वो रूठते हैं. उन्हें मनाया जाता हैं. वो मान जाते हैं. राजनीति की ढलती बेला में कभी बीजेपी के लौह पुरुष रहे लाल कृष्ण आडवाणी की यही पहचान बन गई है. पहले मोदी के चुनाव प्रचार समिति के हेड बनाए जाए पर रूठे, फिर पीएम उम्मीदवारी गले के नीचे नहीं उतरी और अब अपनी चुनावी सीट को लेकर रूठे. लेकिन 24 घंटे के अंदर ही सरेंडर भी कर दिया.