पटना का गांधी मैदान हमेशा परिवर्तन की दस्तक का ही प्रतीक रहा है. 19 75 में जेपी तो 1989 में वीपी और फिर लालू के सपने को भी संघर्ष के आसरे इसी गांधी मैदान ने अंजाम तक पहुंचाया और गांधी मैदान ने कई नेताओं को ऱाष्ट्रीय पहचान भी दी और संघर्ष का पाठ भी पढाया. लेकिन 27 अक्टूबर को गांधी मैदान सजा तो ठीक अपनी पहचान के मुताबिक लेकिन जिस तरह नरेन्द्र मोदी की हुंकार गूजती रही और ब्लास्ट दर ब्लास्ट होते रहे उसने पहली बार सवाल खड़े कर दिये हैं.