चुनाव आते हैं तो तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. कोई धर्म में राजनीति खोजता है तो कोई राजनीति में धर्म को. दिल्ली इस चतुराई की राजधानी है. रमजान के महीने में ये चतुराई कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती थी. इफ्तार के नाम पर सियासी मेल-जोल के पांसे फेंके जाते थे लेकिन पिछले 4 साल इफ्तारी राजनीति लगभग बंद थी. फिर कैराना के नतीजे आए, फूलपुर के नतीजे आए गोरखपुर के नतीजे आए और इफ्तार का बाजार फिर से सज गया.