आजादी के साथ विभाजन की लकीर तले मुस्लिमो की ये तादाद हिन्दुस्तान का ऐसा सच है जिसके आसरे राजनीति इस हद तक पली बढी कि सियासत के लिये मुस्लमान वजीर माना गया और सामाजिक-आर्थिक विपन्नता ने इसे प्यादा बना दिया. लेकिन जो सवाल बीते 70 बरस में मुस्लिमो को लेकर सियासी तौर पर नहीं वह सवाल आज की तारिख में सबसे ज्वलंत है कि क्या मोदी राज में मुस्लिम खुद को बदलेगें या फिर मुस्लिम सियासी प्यादा बनना छोड अपनी पहचान को भी बदल लेगें.