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10 तक: नोट पर टिके लोकतंत्र में भूख बेमानी है

10 तक: नोट पर टिके लोकतंत्र में भूख बेमानी है

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का ये अनूठा चेहरा है. एक तरफ एक करोड़ रुपये भी कोई मायने नहीं रखते तो दूसरी तरफ एक मुठ्टी भात दे पाने में सरकार सक्षम नहीं है. एक तरफ 500-500 रुपये की बीस गड्डिया हैं. बिक जाते तो इस तरह 180 गड्डिया और मिल जातीं, दूसरी तरफ भूख और तड़प है. पांच रुपये का चावल भी नसीब नहीं.. जिससे भूख की आग बुझ सके. एक तरफ नरेंद्र पटेल है जो दस लाख रुपये लेकर एक करोड़ की बोली लगाने वाली सत्ताधारी पार्टी की पोलपट्टी खोलने सामने आ गये. देखें- ये वीडियो.

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