मंदिरों की घंटी और शंख की आवाज में खोए शहर की पहचान के पीछे सिर्फ मंदिरों पर लहराते राजनीतिक पार्टियों के झंडे और बैनर ही नहीं है. ये वह शहर है जिसने 25 वर्ष पहले हिंदुस्तान की राजनीति की धारा को ही कुछ इस तरह मोड़ दिया. जिसपर सियासत कुछ इस तरह लहलहाई कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक की सत्ता डोल गई. हवा में चाहे अयोध्याकांड की गूंज हो. लेकिन अयोध्या की गलियों में गंगा-यमुना तहजीब कुछ इस तरह रेंगती है कि फूल मुसलमान बेचते हैं तो मंदिरों में पूजा करने हिंदू पहुंचते हैं. लेकिन इतिहास के साए में अयोध्या का सच ये भी है कि कभी अयोध्या में ना तो कोई मुस्लिम कोतवाल ना ही कोई जिलाधिकारी. किसी राजनीतिक दल ने यहां किसी मुस्लिम को अपना उम्मीवार भी नहीं बनाया.