संघ परिवार हो या बीजेपी दोनो के भीतर अंबेडकर को लेकर जो प्रेम और श्रद्धा उभरी है वह सिर्फ संविधान निर्माता के तौर पर नहीं बल्कि सियासी तौर पर कहीं ज्यादा है. मौजूदा सियासत की महीन लकीर को समझे तो सवाल सिर्फ दलितों के मसीहा अंबेडकर को नई पहचान देकर अपने भीतर समाहित करने भर का नहीं है.