साल 2003 में तहलका के मुख्य फ़ाइनांसर और स्टिंग करने वाले पत्रकारों के जेल चले जाने के बाद तेजपाल के पास काम करने के लिए कुछ ही लोग रह गए थे. उस समय उन्होंने गार्डियन अख़बार से कहा था, 'मुझे संघर्ष की उम्मीद थी लेकिन ये सब इस हद तक होगा इसकी उम्मीद नहीं थी.' आख़िरकार तहलका वेबसाइट मजबूरन बंद करनी पड़ी. साल 2004 में तहलका फिर से एक अख़बार के रूप में रिलॉन्च हुआ.