28 दिसंबर, ये वो काला दिन है, जब 16 साल पहले रुचिका ने इस देश की व्यवस्था से तंग आकर जहर खा लिया था. बरसों बाद आज भी रुचिका का परिवार इंसाफ तलाश रहा है. फर्क बस इतना है तब वो अकेले थे जबकी आज इस जंग में उनके साथ पूरा देश है.