माटू हमरू, पाणी हमरू, हमारा ही छान ये बौन भी...पितरों ना लगाई बॉन, हमू नाहीं ता बचाऊंन भी... ये शब्द कहे जाते थे अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिए एक समय उत्तराखंड में. लेकिन आज आपदा के समय पर्यटकों को बचाने की बात तो हो रही है, लेकिन वहां के मूल निवासियों के बारे में शायद ही कहीं बात हो रही हो.