10 तक में पूण्य प्रसून वाजपेयी सुना और दिखा रहे हैं इक्कीसवीं सदी के भारत की तस्वीर जहां आज भी देश की राजधानी दिल्ली में एक नवजात बच्चे की लाश कब्रगाह से किन्हीं अनजान वजहों से निकाल ली जाती है. परिवार गुहार लगाता रह जाता है और कुछ भी हासिल नहीं होता.जहां ओडिशा जैसे प्रांत में रहने वाली अधिकांश जनता अब भी प्राथमिक उपचार तक के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है. जहां किसान अब भी देश के सबसे वंचित समुदाय से ताल्लुक रखता है. जहां किसान होना मात्र ही अभिशाप जैसा हो जाता है.