भीड़तंत्र की सोच, ना कानून की सुनती है, ना नैतिकता मानती है, वो सीधे-सीधे लोकतांत्रिक समाज में ताकत का तंत्र चलाने लगती है. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं. कभी अखलाक, कभी जुनैद, कभी पहलू खान तो कभी अयूब पंडित. भीड़ के हाथों हिंसा की प्रवृति बढ़ रही है और इस पर आज संसद में बहस भी हुई है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजनीतिक पार्टियों ने इस प्रवृत्ति की निंदा की है, लेकिन सवाल यही उठ रहा है कि हिंसा क्यों नहीं रुक रही है?