देश की संसद में असहिष्णुता पर बहस चल रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या असहिष्णुता पर बहस से देश का माहौल बदलेगा ? या असहिष्णुता के नाम पर पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं ?