दिल चला गया, दिलबर चला गया...साहिल कहता है समंदर चला गया...दुनिया से मौसिकी का पयंबर चला गया!ये नज़्म नौशाद ने कही थी... जब मोहम्मद रफी के इंतकाल की खबर आई. वो 31 जुलाई 1980 की रात थी. रमजान का महीना था और अगले दिन जुमे की नमाज थी. लेकिन रफी साहब की तबीयत नासाज थी. किसी को भनक तक नहीं थी कि सुर-ओ-साज का वो मसीहा अपनी धकड़नों की लय से जूझ रहा है. मगर उसके सुर मद्धम नहीं पड़े. ये सबको पता था. तभी तो वो खबर और 31 जुलाई की वो मनहूस तारीख गायकी की दुनिया को मायूस कर जाती है. आज की कहानी में मोहम्मद रफी.