ख़बरदार में आज हम सबसे पहले किसानों की कर्ज़माफी के मुद्दे का विश्लेषण करेंगे. जिसे इस देश में नेताओं ने चुनावी जीत का हिट फॉर्मूला बना लिया है या फिर थोड़ी तीखी बात करें तो ये एक तरह से चुनाव जीतने का शॉर्टकट बन चुका है. आपको शायद पता नहीं होगा कि जिस देश में खेती किसानी के इतने बड़े संकट की बात की जा रही है वहां पिछले चार साल में 11 राज्यों में कर्जमाफी के पैकेज दिए जा चुके हैं. लेकिन क्या इससे किसानों के अच्छे दिन आए. शायद नहीं. क्योंकि अच्छे दिन सिर्फ उन नेताओं और उन पार्टियों के आए. जिनको कर्जमाफी के चुनावी वादे के ज़रिए यूपी से लेकर एमपी तक. पंजाब से लेकर कर्नाटक तक. सत्ता में आने का चांस मिला.अब 2019 के लिए भी कुछ ऐसी ही बातें हो रही हैं. जिसको लेकर राहुल गांधी नरेंद्र मोदी की नींद उड़ाने की बातें कर रहे हैं. तो उधर ऐसा लग रहा है कि सरकार भी इस मुद्दे को लेकर किसी नए गेमप्लान के साथ है. लेकिन यहां सवाल सिर्फ कर्जमाफी के सहारे चुनावी जीत का नहीं है. सवाल ये है कि ऐसा कब तक चलता रहेगा.
The results themselves were significant especially because the Congress managed to come to power in Chhattisgarh and Madhya Pradesh after 15 years of BJP rule.The sub text of the victory was the farm loan waiver promised by the Congress as the palliative to the victims of farm distress afflicting all three states. Analysts believe, like it did for the Congress led United Progressive Alliance in 2008, it has, once again, contributed in tilting the electoral scales in its favour.