मुंबई अब महानगर नहीं एक महानदी है. इस महानदी में नावें तैर रही हैं. बच्चे तैर रहे हैं और सामान तैर रहे हैं. सरकार के सारे इंतजाम नाकाम हो गए हैं. लोग हिम्मत करके घरों से निकल भी जाएं तो कहीं पहुंच नहीं सकते. और पहुंच भी गए तो वापस कब लौटेंगे इसकी गारंटी नहीं. कुल मिलाकर उस शहर की मौत हो चुकी है जिसकी चमक पर फिदा होकर नई पीढ़ी मुंबई की ट्रेन में बैठ जाया करती थी.