पुलिस इंसाफ के लिए होती है. कानून का राज कायम करने लिए होती है. आम आदमी को हक दिलाने के लिए होती है. लेकिन जब पुलिस ही इंसाफ का गला घोंटने लगे, कानून को अपने बूट से कुचलने लगे, गरीबों पर हंटर बरसाने लगे तो हम कहां जाएं? गुड़गांव के प्रद्युम्न हत्याकांड में फंसाए अशोक का ये सवाल कलेजा चीर देता है. वो कहता है कि उसे हत्यारा साबित करने के लिए हरियाणा पुलिस ने बेशर्मी और बर्बरता के सारे पैमाने ध्वस्त कर दिए थे.