हम कितनी तरक्की कर चुके. सीरिया के हालात पर रो लेते हैं. अफ्रीका के हालात पर रो लेते हैं. अश्वेतों पर हो रहा अन्याय हमें उदास और दुखी कर देता है. लेकिन क्या हम वाकई इतने संवेदनशील हैं? मुंबई से आई एक तस्वीर का कहना है कि नहीं. अगर ऐसा होता तो एक मां कंकाल में न बदल जाती .।वो अपने बेटे से बात करने के लिए न तड़पती. अमेरिकी बयार में अपनी मां को बिसार चुका बेटा जब डेढ़ साल बाद लौटता है तो उसे अपनी मां नहीं उसका कंकाल मिला. किसी को नहीं पता कि मां कब मर गई.