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मैं भाग्य हूं: संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं

मैं भाग्य हूं: संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं

एक घर के पास बहुत दिनों से एक बड़ी इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था. वहां रोज मजदूरों के छोटे बच्चे एक दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल-रेल का खेल खेला करते. इस खेल में रोज कोई एक बच्चा इंजन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे. इंजन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते थे. इस पूरी कहानी और उससे क्या सीख मिलती है, यह जानने के लिए मैं भाग्य हूं देखिए.

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