इस जगत में इंसान की नियति उसके जीवन चक्र का अभिन्न अंग है. अपनी जीवन यात्रा में मनु्ष्य मुझे ही अपने लिए सकारात्मक बनाने की चेष्टा में लगा रहता है. किन्तु मैं कहता हूं इंसान को मुझे साधना अपने जीवन का लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए. देखें मैं भाग्य हूं.