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मैं भाग्य हूं : स्वतंत्र मन से ही संभव है विकास

मैं भाग्य हूं : स्वतंत्र मन से ही संभव है विकास

मन को न बनने दें किसी का गुलाम. स्वतंत्र मन से ही संभव है विकास. अंधविश्वास से दूरी है बहुत जरूरी. व्यक्ति सोचता है मन से और करता है अपने तन से. यानी तन और मन जीवन सरित के दो किनारों के समान होते हैं. अंतर इतना है कि तन दिखाई देता है, लेकिन अत्यंत शक्तिशाली होते हुए भी अदृश्य रहता है. इसलिए इसके बारे में बहुत सी बातें हैं, जो हमें पता ही नहीं चलतीं. आज मैं भाग्य हूं में जानिए इसी तन और मन से जुड़ी बेहद अहम बातें.

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