लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री और सांसदों को शामिल किया जाना चाहिए या नहीं, ये तय करने बैठे थे सभी दलों के सांसद और खुद प्रधानमंत्री. जाहिर है जब मुद्दा खुद पर शिकंजा कसने का हो तो कोई ऐसा कैसे करेगा. यही हुआ, ढाई घंटे की बैठक के बाद भी नतीजा रहा ढाक के तीन पात.