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कोरे कागज पर दर्द बयां कर गई प्रीति राठी

कोरे कागज पर दर्द बयां कर गई प्रीति राठी

वो कोरे कागज पर दर्द की दास्तां लिख गई, गम की स्याही से टेढ़े-मेढ़े शब्‍दों में जमाने का सीना चाक कर गई. उसके पास जीने का हौसला था, जिंदगी से लड़ने की हसरत थी, उसका जिस्म झुलस गया था मगर, अपने दर्द को, वो चुनिंदा पन्नों में समेट गई. प्रीति राठी नर्स बनकर ख्वाबों की हसीन दुनिया दामन में समेटना चाहती थी. लेकिन एक जालिम ने उसकी जिंदगी में तेजाब झोंक दिया, वो झुलस गई, और सांसों को जिंदा ना रख सकी.

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