जिस नज्म की पंक्तियां सुनकर क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों का जोश दोगुना हो जाता था, वो नज्म अब मजहबी सवालों में घिर गई है. मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म हम देंखेंगे पर कानपुर आईआईटी में पिछले 17 दिसंबर को कुछ छात्रों ने नागरिकता कानून का विरोध करते हुए ये नज्म पढ़ी, इसके बाद से ही सवाल उठ गए कि क्या ये नज्म हिंदू विरोधी है. देखें स्पेशल रिपोर्ट.