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अब भी न संभले तो लुटना तय समझिए

अब भी न संभले तो लुटना तय समझिए

एक ऐसी दुनिया जो कागज के टुकड़ों में पसरे चंद इश्तेहारों और बेतार फोन के रास्ते आपके दिल-दिमाग और जेब पर एक साथ हमला करती है. खेल इतना पुख्‍ता कि बस इधर आपने गलती की और उधर आपका लुटना तय.

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