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औरतों के वजूद पर कैसे रुके आघात?

औरतों के वजूद पर कैसे रुके आघात?

महिला दिवस के मौके पर एक खास गुजारिश...चंद दिनों पहले एक गुज़ारिश देश की सबसे बड़ी अदालत से की गई थी. गुजारिश थी 37 साल से ज़िंदा लाश की तरह जी रही अरुणा को ज़िंदगी से आज़ाद करने की, पर ये तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है. इस तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि आधे हिंदुस्तान की नुमाइंदगी करने वाली औरतों के वजूद पर आज भी चोट की जा रही है.

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