इधर आसाराम इंतज़ार करते रह गए और उधर, बहस -दलीलों में सारा दिन निकल गया. ज़मानत की आस लिए बैठे बंदी बाबा आसाराम को निराशा हाथ लगी. लेकिन जेल की चारदीवारी के पीछे आसाराम के 24 घंटे कैसे गुज़रे, ये या तो खुद आसाराम जानते हैं या फिर उन पर नज़र रखनेवाले जेल के मुलाजिम. ध्यान और भक्ति से लोगों को खुश रहने का नुस्खा बतानेवाले आसाराम की सारी खुशी एक रात में ही काफूर हो चुकी थी.