ज़रा सोचिए. जिसके पास छह हजार करोड़ से ज्यादा की मिल्कियत हो. जो घर छोड़िए शहर बसाने निकल पड़ा हो. जिसके बड़े-बड़े मॉल और मल्टीप्लेक्स हों, क्या वो फकत 12 एकड़ या सवा दो सौ करोड़ के एक फार्म हाउस के लिए अपनी जान दे सकता है या किसी की जान ले सकता है? आपको ये बात अजीब लगेगी पर सच्चाई यही है कि पौंटी चड्ढा और उसके भाई की जान एक फार्म हाउस के चक्कर में ही गई.