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मोमबत्तियां तो जलीं, लेकिन मिटा नहीं अंधेरा

मोमबत्तियां तो जलीं, लेकिन मिटा नहीं अंधेरा

सिर्फ चार महीने पहले दिल्ली के 16 दिसंबर ने पूरे देश को खौला दिया था. सड़क से लेकर संसद तक शोर था. तब अपने दिल्ली के कमिश्नर साहब ने सामने आकर बड़ी-बड़ी डींगे हांकी थीं. लंबे-चौड़े वादे और दावे किए थे. पर नतीजा क्या निकला? सिर्फ तारीख बदली, तस्वीर नहीं. वो 16 दिसंबर की मासूम थी. ये 15 अप्रैल की गुड़िया है. नाम अलग है, तारीख अलग, जगह अलग. पर हां, दरिंदगी की कहानी भी वही है और कमिश्नर साहब भी वही.

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