गम गुस्से और आंसुओं की उंगली पकड़कर इंसानों के बीच मौजूद भेड़ियों से मुक़ाबला करने पहली बार ये देश पिछले साल 16 दिसंबर को निकल तो पड़ा था, लेकिन क्या हुआ? क्या हुआ उस गुस्से का, जो आपा खोता नज़र आ रहा था? क्या हुआ पत्थरों की जगह हाथों में उठाई गईं उन मोमबत्तियों की लौ का? दरअसल हुआ तो बहुत कुछ, लेकिन बदला कुछ भी नहीं.