आज वारदात में बात एक ऐसी कहानी की, जिसकी बुनियाद मुहब्बत और नफ़रत की ईंटों से रखी गई. जैसे-जैसे मुहब्बत जवां हुई, नफ़रत का चेहरा भी ख़ौफ़नाक होता गया. मुहब्बत ने अगर नई ज़िंदगी की शुरुआत कर दी, तो नफ़रत ने लाशें बिछा दीं. लम्हा गुज़रा, वक्त गुज़रा लेकिन हालात के बिसात पर जारी शह और मात का ये खेल अब भी लाशों की शक्ल में जारी है.