'कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर.' बहुत पहले कबीर ने ये दोहा बनारस के बाजार में खड़ा होकर कहा था. लेकिन तब उन्हें शायद की यह अंदाजा हो कि अब उसी बनारस में वो वक्त भी आएगा, जब गंगा की लहरें भी सियासत के बाजार में हिचकोले खाने लगेंगी.