धरती की सतह पर भले ही दो तिहाई पानी हो, लेकिन धरती के अंदर आग का एक ऐसा भंडार है, जो बरसों से बाहर निकलने को बेताब है. जब बेचैनी बढ़ती है, तो धरती उगलने लगती है आग और फिर वो बन जाता है तबाही का ऐसा दरिया, जिसमें जलकर कई सभ्यताएं खाक हो चुकी हैं.