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आतंक की नई जुबान में तबाही ही तबाही...

आतंक की नई जुबान में तबाही ही तबाही...

कभी आपने बारूद में लिपटा फूल या कांटों में उलझा बम देखा है? एबीसीडी में छुपा धमाका या फिर एक से दस तक की गिनती में बंद मौत की जगह या तारीख के बारे में सुना है? आपको ये बातें अटपटी लग रही होंगी और वो बस यही चाहते हैं. क्योंकि जो बातें जब तक हमारे और आपके लिए अटपटी बनी रहेंगी वो बातें तब तक उनके लिए खौफ की नई ज़ुबान होंगी. एक ऐसी नई जुबान जिसके हर लफ्ज में बस तबाही ही तबाही है.

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