असम में राहत शिविरों में लोग जैसे-तैसे जी रहे हैं, लेकिन वो बस्तियां जो कभी बच्चों के शोर से गुंजायमान रहती थी और वहां के वासिंदों से गुलजार रहा करती थीं वो बीहड़ बन चुकी हैं.