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1992 Ajmer Sex Scandal: 1992 के अजमेर सेक्स स्कैंडल में नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन जैसे 6 और हैवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. हैरानी की बात यह है कि 1992 में हुए इस कांड के बाद पुलिस के लिए पीड़िताओं को सामने लाना और सबूतों को सहेजकर रखना बहुत बड़ी चुनौती थी. क्योंकि पीड़िताओं ने समाज में बदनामी और दुष्कर्मियों के खौफ की वजह से अपना घर और शहर तक छोड़ दिया था और बतौर सबूत जमा किया गया सामान मसलन बिस्तर और कंडोम इत्यादि बदबू मारने लगे थे. लेकिन सबूतों और गवाहों के अभाव में आरोपी बचकर न निकल जाएं, इसलिए पुलिस ने सबूतों को तो सहेता ही, साथ ही नाते-रिश्तेदारों की मदद से किसी बहाने पीड़िताओं के फोन नंबर जुटाए और फिर फोन सर्विलांस में डालकर उन्हें गवाही देने के लिए मनाया.
अभियोजन विभाग के सहायक निदेशक विजय सिंह राठौड़ इस मामले की साल 2020 से पैरवी कर रहे हैं. उनसे पहले करीब 12 अभियोजक बदल चुके. उन्होंने बताया कि इस कांड में 100 से ज्यादा स्कूली छात्राओं को दरिंदों ने अपना शिकार बनाया, लेकिन अभियोजन पक्ष और पुलिस सिर्फ 16 पीड़िताओं को ही गवाही के लिए तैयार कर सकी. आखिर कुछ गवाही के बाद इनमें से भी 13 पीड़िताओं ने रसूखदार आरोपियों के खौफ से कोर्ट में अपने बयान बदल दिए. ऐसे में अदालत में पीड़िताओं के पुराने बयानों के आधार पर कार्रवाही की.
32 साल से सहेज कर रखे सबूत
अभियोजन पक्ष के वकील वीरेंद्र सिंह ने बताया कि 1992 के दौरान आरोपियों की निशानदेही पर बरामद किए गए सबूतों को सहेजकर रखना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. दरअसल, पुलिस ने आरोपियों के फार्म हाउस से कंडोम, कैमरे, डायरी, बिस्तर, कैसेट्स, कपड़े इत्यादि वस्तुएं बतौर साक्ष्य जुटाकर रखी थीं. मामले में चार बार ट्रायल होने पर कोर्ट में सामान को चार बार पेश किया गया. हालात ऐसे हो गए कि 32 साल में बिस्तर तो बदबू मारने लगे थे.
100 से अधिक लड़कियों के साथ रेप
अजमेर की स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने सनसनीखेज सेक्स स्कैंडल में 6 और लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इस स्कैंडल में 100 से अधिक लड़कियों के साथ बलात्कार और उन्हें ब्लैकमेल किया गया था. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कोर्ट के जज रंजन सिंह ने हर आरोपी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
अभियोजन पक्ष के वकील वीरेंद्र सिंह ने बताया कि नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सईद जमीर हुसैन को अपराध में शामिल होने का दोषी ठहराया गया है. बीमार चल रहे भाटी को एंबुलेंस में दिल्ली से अजमेर कोर्ट लाया गया था.
1992 में सामने आया था अजमेर सेक्स स्कैंडल
दरअसल, अजमेर सेक्स स्कैंडल 1992 में सामने आया था. 11 से 20 साल की उम्र की स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियों को एक गिरोह ने शिकार बनाया था. गिरोह के सदस्यों ने उनसे दोस्ती की और आपत्तिजनक परिस्थितियों में उनकी तस्वीरें खींचीं और बाद में उनके साथ बलात्कार किया. पीड़िताएं अजमेर के एक फेमस प्राइवेट स्कूल में पढ़ती थं. उन्हें एक फार्महाउस में बुलाया जाता था, जहां उनके साथ बलात्कार किया जाता था.
वकील वीरेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि इस मामले में कुल 18 आरोपी थे. मामले में पहली चार्जशीट 12 लोगों के खिलाफ दाखिल की गई थी. इनमें से नसीम उर्फ टार्जन 1994 में फरार हो गया था और जहूर चिश्ती को एक लड़के से अप्राकृतिक यौन संबंध (धारा 377) के तहत दोषी पाया गया था तो उसका मामला दूसरी अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया था.
फारूक चिश्ती को सिजोफ्रेनिया होने के बाद अलग से मुकदमा चलाया गया और 2007 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. आरोपियों में से एक ने आत्महत्या कर ली थी. बचे 8 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने 1998 में आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी.
उन्होंने बताया कि दूसरी चार्जशीट नफीस चिश्ती, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी, सईद जमीर हुसैन और अलमास महाराज के खिलाफ दाखिल की गई थी. अलमास अभी भी फरार है. शेष पांच- नफीस चिश्ती, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी, सईद जमीर हुसैन और एक अन्य आरोपी नसीम उर्फ टार्जन (जिनका नाम पहली चार्जशीट में था) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. अन्य आरोपी, जिन्हें पहले सजा दी गई थी, या तो अपनी सजा पूरी कर चुके हैं या अदालतों से बरी हो चुके हैं.
वकील ने बताया कि इन छह लोगों के लिए अलग से मुकदमा चलाया गया, क्योंकि पहली चार्जशीट दाखिल करने के समय उनके खिलाफ जांच लंबित रखी गई थी.