राजस्थान का सियासी ड्रामा दिल्ली तक जारी है. इस पूरे सियासी ड्रामे के केंद्र में हैं अशोक गहलोत. कुछ दिनों से चर्चा थी कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन सकते हैं. उन्होंने भी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. लेकिन राजस्थान में सीएम बदलने की चर्चा के बाद अचानक बवाल मच गया. गहलोत खेमे के 82 विधायकों ने नाराज होकर इस्तीफा दे दिया. बात इतनी बिगड़ गई कि कांग्रेस आलाकमान और अशोक गहलोत आमने सामने आ गए. यहां तक कि आलाकमान को चुनौती देने के बावजूद दिल्ली दरबार उनपर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा सका. ऐसे में हम आपको वो किस्सा बताने जा रहे हैं कि कैसे गहलोत रातोरात इंदिरा गांधी के फेवरेट बन गए थे.
अशोक गहलोत की कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं है. उन्होंने मारवाड़ के कद्दावर नेता परसराम मदेरणा की सरपरस्ती में राजनीति शुरू की. मदेरणा ने अशोक गहलोत को खूब आगे बढ़ाया. इमरजेंसी में जब कांग्रेस का कोई टिकट नहीं मांग रहा था तब मदेरणा ने गहलोत को टिकट दिलवाया. भले ही इस चुनाव में उन्हें हार मिली हो, लेकिन वे संजय गांधी के दोस्तों की कतार में पहुंच गए.
इसके बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव थे. उस समय आम तौर पर कोई नेता जम्मू कश्मीर नहीं जाना चाहता था. ऐसे में तत्कालीन कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी ने अशोक गहलोत को विधानसभा चुनाव में खर्चे का प्रभारी बनाकर भेज दिया. वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी इस किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं कि चुनाव के बाद गहलोत सीताराम केसरी के पास पहुंचे और कहा कि पैसे बच गए हैं, इन्हें ले लीजिए. सीताराम केसरी यह देखते हैरान थे, कि कांग्रेस में आज तक चुनाव में बचे पैसे कोई लौटाए ही नहीं. केसरी इतने खुश हुए कि उन्होंने इस युवा नेता को इंदिरा गांधी से मिलाया.
सीताराम केसरी बने गहलोत के गॉड फादर
इंदिरा गांधी ने खुश होकर अपनी सरकार में उपमंत्री बना दिया और गहलोत को सीताराम केसरी के रूप में गॉड फादर मिल गया. इसके बाद गहलोत जो चाहते मांग लेते और सीताराम केसरी दिलवा देते. गहलोत संगठन पर पकड़ चाहते थे. गहलोत तीन बार राजस्थान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने तो सीताराम केसरी ने ही बनाया.
राजनीतिक गुरू से ही छीनी कुर्सी!
1998 में कांग्रेस को राजस्थान में 156 सीटें मिलीं. उस वक्त गहलोत के राजनीतिक गुरू परसराम मदेरणा मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. लेकिन चेले की चाल गुरू समझ नहीं पाए. जब बारी आई मुख्यमंत्री बनाने की तो पार्टी आलाकमान ने पर्यवेक्षकों माधवराव सिंधिया और गुलामनबी आजाद को भेजकर एक लाइन का प्रस्ताव पास किया और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे जबकि विधायकों का समर्थन मदेरणा के पक्ष में था. अशोक गहलोत उस समय विधायक भी नहीं थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के एक लाइन के प्रस्ताव वाले फॉर्मूले ने मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें सौंप दी. इस तरह विधायक बनने से पहले ही उन्हें विधायक दल का नेता चुन लिया गया और मुख्यमंत्री बना दिया गया था. परसराम मदेरणा भी गांधी परिवार के प्रति वफादार थे और पार्टी आलाकमान के आदेश को इग्नोर नहीं कर सके.