
देश में हर तरफ 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का अभियान चलाया जा रहा है. मगर, एक हिस्सा ऐसा भी है, जहां बेटियों का व्यापार हो रहा है. राजस्थान-गुजरात बॉर्डर का इलाका लड़कियों की मंडी बन गया है. यहां मजदूरी के लिए आई लड़कियों का खरीदने-बेचने का व्यापार होता है. बहुत सारी खुशकिस्मत लड़कियां वापस घर लौटीं भी हैं, लेकिन बिन ब्याही मां बनकर.
वहीं, कुछ मां-बाप बरसों से बेटियों के घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं. 'आजतक' के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार, करीब 500 से ज्यादा लड़कियां उदयपुर (गुजरात बॉर्डर) इलाके से गायब हुई हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग के पास भी 40 लड़कियों के गायब होने की रिपोर्ट पहुंची है.
जमीन गिरवी रखकर पुलिस को दिए 50 हजार रुपए
कोटड़ा के मामेर में सीमा (बदला नाम) चार साल बाद अपने घर लौटी है. वो 12 साल की उम्र में मजदूरी के लिए गुजरात गई थी. अब जब लौटी, तो बिन ब्याही मां बन गई. उसके साथ तीन साल का बच्चा है. मगर, वह भी आसानी से अपने परिवार के पास नहीं पहुंच सकी.
पहले पिता ने बहुत खोजबीन की. जहां वह काम करती थी, उस खेत का मालिक भी कुछ नहीं बता रहा था. इसके बाद पिता ने थाने में मामला दर्ज कराया, लेकिन पुलिस ने कोई सुनवाई नहीं की. फिर पिता ने अपना खेत गिरवी रखकर पुलिस को रिश्वत में 50 हजार रुपए दिए.
इसके बाद पुलिस ने जाल बिछाकर पहले दलाल को गिरफ्तार किया और फिर लड़की के खरीददार को भी गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं, पीड़ित पिता ने बताया, "मैं अपनी बेटी और उसके बच्चे को पाल लूंगा. मगर, बेटी को काम करने के लिए अब कहीं नहीं भेजूंगा."
पीड़िता ने बताया, "मजदूरी करने गई थी. गुजरात का लड़का खरीदकर ले गया गया. वहां मेरे साथ गलत काम किया. वह घर में बंद करके रखता था और हमेशा मेरे साथ मारपीट करता था."
यहां के घर-घर की यही कहानी है
यह अकेली सीमा की कहानी नहीं है. उदयपुर जिले के कोटड़ा, झाड़ोल और पलासिया इलाके में घर-घर की यही कहानी है. ठेकेदार के यहां मां के साथ कोटड़ा की ममता (बदला हुआ नाम) भी मजदूरी के लिए गई थी. मां ने पैसे कमाने के लिए पटेल के साथ गुजरात भेज दिया.
वहां से वह 6 साल बाद करीब 6 महीने पहले ही घर लौटी है. उसने बताया कि पटेल ने उसे बेच दिया था. वहां ममता भी बिन ब्याही मां बन गई. बच्चा कहां है, पता नहीं है. एक दिन गांव के ही मजदूर मिल गए तो, उनके साथ भागकर वापस आ गई.
दलाल और तस्कर उठा ले जाते हैं बेटियों को
ऐसा नहीं है कि पुलिस को बेटियों के इस व्यापार के बारे में पता नहीं है. ये इलाका पहाड़ी है. पहाड़ी के रास्ते से दलाल और तस्कर बेटियों को उठाकर ले जाते हैं. फिर औने-पौने दाम में बेच देते हैं. मगर, पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती है.
रात को सौदा होता था, महीने में 4 बार बेचा गया
ये वो लड़कियां है, जो गुजरात में अपने-अपने खरीददारों के चंगुल से किसी तरह निकलकर वापस घर लौट आई हैं. काली (बदला नाम) बताती है कि उसको तस्कर उठाकर ले गया था. उसे एक महीने में चार बार बेचा गया. रात को सौदा होता था. फिर खरीदार रेप करता था.
इसके बाद फिर से किसी और से सौदा कर दिया जाता था. एक दिन दो लाख में सौदा फाइनल करके एक घर में रखा था. तभी उसने अपने मां-बाप को खिड़की से देखा. इसके बाद किसी तरह से वहां से भागकर घर वापस आ गई.
9 सालों से बहन की तलाश
उदयपुर के जैर के रहने वाली एक लड़की कहती है कि वो 9 साल से अपनी बहन की तलाश कर रही है. गांव के ही लोगों के साथ मजदूरी करने के लिए वह गुजरात गई थी. वहां से सब आ गए. मगर, मेरी बहन नहीं आई है. उन लोगों से पूछा, तो किसी ने कोई जवाब नहीं दिया.
इसकी शिकायत पुलिस से की. पुलिस वहां गई भी थी, जहां मेरी बहन काम करती थी. मगर, पुलिस उनसे बात कर लौट आई. जांच में क्या निकला, पुलिस नहीं बता रही है.
लड़कियों को पता ही नहीं होता कि वे कहां हैं
सामाजिक कार्यकर्ता रीता देवी ने बताया, "गुजरात के पाटन, मेहसाणा, पालनपुर, हिम्मतनगर, बीजापुर और अहमदाबाद में इन लड़कियों की सप्लाई की जाती है. उदयपुर का इलाका ऐसा है कि एक गांव राजस्थान में पड़ता है, तो दूसरा गुजरात में."
उन्होंने आगे बताया, "तस्करी की जाने वाली लड़कियां कम पढ़ी लिखी होती हैं और कई बार भाषा की भी समस्या होती है. इसी वजह से वे जान ही नहीं पाती है कि किस गांव में उन्हें ले जाया गया है. जब तक वे कुछ समझ पाती हैं, तब तक देर हो जाती है."
कई मामलों में शामिल होते हैं परिचित- आईजी हिंगलाज
मामले में उदयपुर के तत्कालीन आईजी हिंगलाज दान ने बताया, "बहुत सारे मामलों में परिचित और जानकार ही शामिल होते हैं. गुजरात बॉर्डर होने की वजह से तस्कर और दलाल आसानी से इस इलाके में बेटियों के खरीद-फरोख्त में सफल हो जाते हैं."