अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में उत्साह है. इस उत्साह में राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे कार सेवक भी शामिल हैं. इन्हीं में से एक नाम है जयपुर के रहने वाले हाजी गुल मोहम्मद मंसूरी का. 1992 के पलों को याद करते हुए मंसूरी ने बताया कि आंदोलन से जुड़ने का असर यह हुआ कि समाज उनके खिलाफ हो गया. इतना ही नहीं लोग उन्हें गुल मोहम्मद की जगह गुल्लूराम कहने लगे.
हाजी गुल मोहम्मद मंसूरी बताते हैं, आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से हजारों धमकियां मिलीं. डर की वजह से पत्नी ने साथ रहने से इनकार कर दिया. परिवार डर के साए में जी रहा था. 24 घंटे घर के बाहर पुलिस का पहरा था. जयपुर की जामा मस्जिद से जारी हुए फतवे के बाद समाज में रहना मुश्किल हो गया.
'खुद की पत्नी से दोबारा निकाह करना पड़ा'
आखिर में गुल्लूराम से गुल मोहम्मद बनने के लिए कलमा पढ़ना पड़ा. खुद की पत्नी से दोबारा निकाह करने के बाद वापस उनका नाम गुल मोहम्मद पड़ा. ऐसे में अब राम मंदिर बनने पर उन्होंने खुशी है. राम मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो क्या पाकिस्तान में बनेगा. भले ही उन्हें निमंत्रण नहीं मिला हो लेकिन अल्लाह ने चाहा तो दर्शन जरूर करूंगा.
'खुशी है कि वो आंदोलन आज रंग लाया'
बता दें कि 1977 में गुल मोहम्मद मंसूरी जनता पार्टी से विधायक बने. 1992 में जब राम मंदिर का आंदोलन के तहत अयोध्या कूच हुआ तब कारसेवकों की टोली में वो भी शामिल थे. देशभर में बवाल कटा तो जयपुर में भी तनाव बढ़ गया. फिर आंदोलन के बाद ट्रेन से जैसे-तैसे जयपुर पहुंचे. मगर, घर के बाहर समाज के लोग ही उन्हें मारने दौड़ पड़े. धीरे-धीरे जब तनाव शांत हुआ तो समाज से नाता टूट गया. मगर, अब खुशी है कि वो आंदोलन आज रंग लाया.