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Jaipur: सम्मेद शिखर प्रोटेस्ट में चार दिन के अंदर दूसरे जैन मुनि ने त्यागे प्राण

सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में अनशन पर बैठे एक और जैन मुनि ने अपना प्राण त्याग दिया है. देर रात मुनि समर्थ सागर का निधन हो गया. उन्होंने जयपुर में अपने प्राण त्यागे हैं. सम्मेद शिखर को लेकर पिछले चार दिनों में दो जैन मुनियों ने अपने देह त्याग दिए. इससे पहले जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने अपने प्राण त्याग दिए थे.

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सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित का मुद्दा बढ़ता जा रहा है. पूरे देश में विरोध हो रहे हैं और कई जैन मुनि अनशन पर बैठे हैं. जयपुर में अनशन पर बैठे एक और जैन मुनि ने अपना प्राण त्याग दिया है. देर रात मुनि समर्थ सागर का निधन हो गया. सम्मेद शिखर को लेकर पिछले चार दिनों में दो जैन मुनियों ने अपने देह त्याग दिए. इससे पहले जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने अपने प्राण त्याग दिए थे.

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हालांकि, कल ही केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने के फैसले पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. इसके साथ ही इस मसले पर एक कमेटी भी बनाई गई है. केंद्र ने झारखंड सरकार से इस मुद्दे पर जरूरी कदम उठाने को भी कहा है. सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने के फैसले से जैन समाज काफी नाराज चल रहा था.

आज दी जाएगी समाधि

जयपुर के सांगानेर स्थिति संघीजी दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य सागर महाराज के ही शिष्य मुनि समर्थ सागर अमरण अनशन कर रहे थे. इसी मंदिर में जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने 3 दिसंबर मंगलवार को प्राण त्यागे थे. मंदिर में आचार्य सुनील सागर महाराज प्रवास पर हैं और सानिध्य में ही मुनि समर्थ सागर को जैन रीति रिवाजों साथ आज समाधि दी गई. 

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समर्थ सागर महाराज की यात्रा संघी जी मंदिर से विद्याधर नगर पहुंची, जिसमें बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग मौजूद रहे. लोगों का कहना है कि जैन मुनि समर्थ सागर के सम्मेद शिखर को बचाने के लिए लिए दिए गए इस बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा.

क्यों हो रहा है विरोध?

देश की आबादी में 0.4 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला जैन समाज झारखंड सरकार के उस फैसले से नाराज था, जिसमें तीर्थस्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने की बात कही गई थी. सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने को लेकर सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि दिल्ली, जयपुर और भोपाल तक प्रदर्शन हो रहा था. 

सम्मेद शिखर इतना अहम क्यों?

जैन धर्म की तीर्थस्थल सम्मेद शिखर झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है. इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23वें तीर्थांकर पारसनाथ के नाम पर पड़ा है. ये झारखंड की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है. माना जाता है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थांकरों ने यहीं निर्वाण लिया था, इसलिए ये जैनों के सबसे पवित्र स्थल में से है.

इस पहाड़ी पर टोक बने हुए हैं, जहां तीर्थांकरों के चरण मौजूद हैं. माना जाता है कि यहां कुछ मंदिर दो हजार साल से भी ज्यादा पुराने हैं. जैन धर्म को मानने वाले लोग हर साल सम्मेद शिखर की यात्रा करते हैं. लगभग 27 किलोमीटर लंबी ये यात्रा पैदल ही पूरी करनी होती है. मान्यता है कि जीवन में कम से कम एक बार यहां की यात्रा करनी चाहिए.

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अब सवाल उठता है कि विवाद क्या है?

अगस्त 2019 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने सम्मेद शिखर और पारसनाथ पहाड़ी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया था. इसके बाद झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल घोषित किया .गया अब इस तीर्थस्थल को पर्यटन के हिसाब से तब्दील किया जाना था. इसी बात पर जैन समाज को आपत्ति थी. 

उनका कहना था कि ये पवित्र धर्मस्थल है और पर्यटकों के आने से ये पवित्र नहीं रहेगा.  जैन समाज को डर था कि इसे पर्यटन स्थल बनाने से यहां असामाजिक तत्व भी आएंगे और यहां शराब और मांस का सेवन भी किया जा सकता है. जैन समाज की मांग थी कि इस जगह को इको टूरिज्म घोषित नहीं करना चाहिए.

 

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