राजस्थान के अजमेर में 15 दिनों तक चलने वाले उर्स में देश-विदेश के लाखों पर्यटक जियारत के लिए अजमेर पहुंचते हैं. दरगाह में दो ऐतिहासिक देग भी मौजूद हैं. इनमें जायरीन अपनी श्रद्धा के अनुसार सोना, चांदी, नगदी के साथ ही खाने की चीजें दान करते हैं. इन देगों का दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सयेदजादगान और अंजुमन शेखजादगान की ओर से संयुक्त रूप से ठेका दिया जाता है. ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स के लिए इस बार यह ठेका 3 करोड़ 70 लाख रुपये में उठा है.
ठेके के लिए अंतिम बोली सय्यद आदिल चिश्ती और उनके साथियों ने लगाई थी. गौरतलब है कि दरगाह में मौजूद दोनों देगों में मीठा भात तैयार किया जाता है. जो कि जायरीन में प्रसाद के रूप में वितरित होता है.
ऐसा नहीं है कि यह देग का ठेका सिर्फ सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के उर्स के मौके पर ही उठता हो. बल्कि विश्व विख्यात पुष्कर मेले के दौरान भी देग ठेका किया जाता है. बड़ी संख्या में पुष्कर मेले में आने वाले लोग गरीब नवाज की बारगाह में माथा टेकने पहुंचते हैं. हर बार यह ठेका उर्स और पुष्कर मेले को मिलाकर कुल 25 दिनों के लिए दिया जाता था, यह पहली बार है कि यह ठेका अलग से दिया गया है.
क्या खास है दरगाह की देगों में
बड़ी देग (रमजान 976 हिजरी 1567 ईस्वी): अकबर बादशाह ने चित्तौड़ फतेह के बाद 7 रमजान 976 हिजरी को बरोज शंबा हाजिर होकर देग को पेश किया. इसमें तकरीबन 120 मन चावल एक बार में पकते हैं.
छोटी देग (1022 हिजरी 1613 ईस्वी): सुल्तान नूरुद्दीन जहांगीर ने इस देग को आगरा में तैयार करवाया था. दरगाह शरीफ में पेश होकर मीठा चावल पकवाया था. लगभग पांच हजार लोगों को खिलवाया था. छोटी देग में लगभग 60 मन चावल एक बार में पकता है.