राजस्थान उपचुनाव में सचिन पायलट की तूफानी 25 सभा के बाद दौसा का राजनीतिक दंगल रोचक होता जा रहा है. बीजेपी के तरफ से कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मैदान में हैं तो कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ता डीसी बैरवा को मैदान में उतारा है. जगमोहन मीणा के लिए भाई किरोड़ी समेत राज्य के एक दर्जन मंत्री मोर्चा संभाले हैं तो वहीं डीसी बैरवा के पीछे मुरारी लाल मीणा हैं. मगर दौसा में पायलट परिवार का गढ़ होने की वजह से मुकाबला रोचक हो गया है. कांग्रेस विधायक मुरारी लाल मीणा के सांसद बनने के बाद दौसा में विधानसभा उपचुनाव हो रहा है.
एस सी और एसटी वोटों पर दांव
बीजेपी ने पहली बार कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे एसटी समाज के जगमोहन मीणा को मैदान में उतारा है. इससे पहले पिछले तीन चुनाव से बीजेपी के ब्राह्मण चेहरा शंकरलाल शर्मा उम्मीदवार होते थे. कांग्रेस परंपरागत रूप से एसटी के मीणा समाज को टिकट देती थी मगर इस बार किरोड़ी लाल मीणा के एसटी समाज पर पकड़ होने और उनके भाई को टिकट देने की वजह से कांग्रेस ने दलित समाज के युवा चेहरे के रूप में डीसी बेरवा को मैदान में है.
ब्राह्मण बड़ा फैक्टर
इस सीट पर ब्राह्मण सहित सामान्य वर्ग का वोट बैंक भी करीब 60 हजार है जो बीजेपी के वोटर रहे है. लेकिन अभी सामान्य वर्ग साइलेंट नजर आ रहा है. सामान्य सीट पर सामान्य वर्ग को टिकट नहीं मिलने के कारण ब्राह्मणों में नाराजगी जरूर है. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा खुद ब्राह्मणों को मनाने के लिए रोजाना ब्राह्मण नेताओं से बात कर रहे है. हरियाणा ब्राह्मण सबसे ज्यादा है और इन्हीं की नाराजगी भी ज्यादा है.
बीजेपी की रणनीति
ब्राह्मणों के टिकट काटकर एसटी को देने के पीछे सचिन पायलट के अजेय कंबिनेशन मीणा गुर्जर हैं. दलित और मुस्लिम वोटों में बिखराव की बीजेपी की रणनीति रही है जिसमें वो सफल होती नजर आ रही है. इसके अलावा किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे की वजह से मीणा समाज की नाराजगी और किरोड़ी लाल मीणा को मनाने की बात भी कही जा रही है.
दोनों उम्मीदवारों की छवि अच्छी
चुनावी प्रचार में जगमोहन मीणा अपने सौम्य स्वभाव को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं और विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं. वो सरकार के 11 माह के कार्यकाल की उपलब्धियां भी गिना रहे हैं, साथ ही दोसा में ईआरसीपी का पानी लाने के साथ-साथ दौसा को एजुकेशन हब बनाना की बात कहकर जनता को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं.
तो वहीं कांग्रेस बीजेपी सरकार के 11 महीने के कार्यक्रम की कमियां पर वोट मांग रही है. कांग्रेस प्रत्याशी भी चुनावी प्रचार में पूरी ताकत झोंकते हुए नजर आ रहे हैं. डीसी बैरवा की सबसे बड़ी ताकत सचिन पायलट है। उन्हें दलित और गुर्जर के अलावा अंगड़ी जातियों के वोट पर भरोसा है. कांग्रेस के प्रत्याशी दीनदयाल बेरवा अपने आपको स्थानीय बताकर वोट मांग रहे हैं. साथ ही सरकार के 11 माह के कार्यकाल को सफल भी बता रहे हैं, मजेदार बात यह है कि इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी जगमोहन के खिलाफ कोई आरोप प्रत्यारोप सामने नहीं आ रहे हैं.
दौसा का चुनावी इतिहास- दलित और मीणा वोटरों का दबदबा
कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा को 98 हजार 238 वोट मिले तो बीजेपी के शंकर लाला शर्मा को 67 हजार 34 वोट मिले. मुरारी ने करीब 31 हजार वोटों से बीजेपी के शंकरलाल शर्मा को हराया.
2018 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी मुरारी लाल मीणा चुने गए थे. उन्हें चुनाव में 99,004 वोट प्राप्त हुए थे और उन्होंने भाजपा के शंकर लाल शर्मा को 50,948 वोटों से हराया था. 2023 में भी कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा ही जीते थे।
2013 के चुनाव में बीजेपी ने यहां से ब्राह्मण उम्मीदवार के रूप में शंकरलाल शर्मा को उतारा था जिन्हें 65 हजार 904 वोट मिले और मुरारीलाल मीणा को 40 हजार 732 वोट मिले. मुरारी लाल मीणा की हार की वजह किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी राजपा रही. उसी साल किरोड़ी लाल मीणा ने बीजेपी से अलग होकर राजपा बनाई थी जिसके उम्मीदवार लक्ष्मी जयसवाल 24 हजार 951 वोट ले गए थे.
इससे पहले मुरारीलाल मीणा ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर कांग्रेस के रामअवतार चौधरी को करीब एक हजार वोटों से हराया था. मुरारी लाल मीणा को 43 हजार और कांग्रेस के चौधरी को 42 हजार वोट मिले थे. बीजेपी के बाबूलाल शर्मा 24 हजार वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.
इससे पहले 1998 में दलित उम्मीदवार नंदलाल बंसीवाल कांग्रेस के टिकट पर और 2003 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते. उससे पहले उनके भाई जीयालाल बंशीवाल दो बार चुनाव जीते. यानी 2003 से पहले दौसा सीट पर दलित जितते थे. खुद कांग्रेस के उम्मीदवार डीसी बैरवा के पिता दो बार चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े मगर मामूली वोटों से हार गए.
कांटे का मुक़ाबला- दोनों के वोटर बराबर
यहां एससी, एसटी और सामान्य मतदाता में ज्यादा अंतर नहीं हैं और तीनों ही वर्ग के मतदाताओं की संख्या करीब 60- 60 हजार के आसपास है। वैसे तो पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समीकरणों की बात करें तो यहां एससी और एसटी कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता है लेकिन इस बार बीजेपी से एसटी से आने वाले जगमोहन मीणा मैदान में हैं. ऐसे में एसटी मतदाताओं का बीजेपी की तरफ झुकाव हो सकता है लेकिन अभी वोट को लेकर कन्फ्यूज भी दिखाई दे रहे हैं. वोटर खुलकर किसी भी दल के साथ नजर नहीं आ रहे हैं.
क्या है जातीय समीकरण
मीणा - 65 हजार
एससी - 57 हजार
ब्राह्मण - 37 हजार
गुर्जर - 22 हजार
माली - 15 हजार
मुस्लिम - 11 हजार
राजपूत - 8 हजार
वैश्य - 10 हजार
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