राजस्थान में चुनाव प्रचार जोरों पर है, मगर बीजेपी की लोकप्रिय चेहरा, दो बार की मुख्यमंत्री और पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे कहां है. राजस्थान बीजेपी में इस सवाल का जवाब देने की स्थिति में कोई नहीं है. यह भी साफ नहीं है कि बीजेपी ने वसुंधरा राजे को चुनाव से दूर कर रखा है या वसुंधरा राजे खुद ही चुनाव से दूर हैं. हैरत की बात है कि वसुंधरा राजे ने अबतक परिवर्तन यात्राओं और विधानसभा चुनाव से जुड़े किसी भी मसले पर एक ट्वीट तक नहीं किया है.
यह सवाल इसलिए चर्चा में है क्योंकि वसुंधरा राजे अपने इलाके झालावाड़ में भी नहीं पहुंची थीं. जितनी मुंह इतनी बातें, मगर सच अब भी धुंधला है. वसुंधरा राजे की खामोशी इस आग को और हवा दे रही है कि महारानी नाराज हैं. ये सवाल अब बीजेपी के प्रचार में आने वाले नेताओं से पूछने का सिललिला तेज हो गया है. सभी का सवाल एक जैसा होता है कि वसुंधरा राजे जी हमारी बड़ी नेता और वो पूरी तरह से चुनाव में सक्रिय हैं.
राजस्थान में चुनाव प्रबंधन समिति के मुखिया नारायण पंचारिया से जब ये सवाल पूछा गया कि वसुंधरा राजे राजस्थान के चुनाव प्रचार में क्यों नहीं दिखाई दे रहीं है तो उनका जवाब था कि क्या जेपी नड्डा और अमित शाह जी दिखाई दे रहे हैं. वसुंधरा जी भी राष्ट्रीय स्तर की नेता हैं और बड़े चुनाव प्रचार में आएंगी. वो सभी बड़े नेताओं के साथ परिवर्तन संकल्प यात्राओं में हिस्सा ले चुकी हैं. उनके पास झारखंड की भी जिम्मेदारी है. राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारियां हैं तो क्या मान लिया जाए कि वसुंधरा राजे चुनाव प्रचार से दूर रहेंगी. बहुत सारे लोगों का कहना कि वसुंधरा के बिना बीजेपी की पार नहीं लगेगी.
कैलाश मेघवाल को बीजेपी ने निकाला
दरअसल जिस तरह से वसुंधरा राजे के करीबी विधायक कैलाश मेघवाल ने खुद को वसुंधरा गुट का नेता बताते हुए कानून मंत्री और चुनाव सकंल्प पत्र समिति की मुखिया अर्जुनराम मेघवाल पर और बीजेपी पर हमला बोला, उससे वसुंधरा राजे की ठीक होती हुई स्थिति फिर से कमजोर हुई है. पार्टी ने तुरंत अपने विधायक कैलाश मेघवाल को पार्टी से बाहर कर दिया. इससे पहले वसुंधरा राजे का नाम लेकर बीजेपी के नेताओं पर हमले बोलने को लेकर रोहिताश्व शर्मा को भी पार्टी ने बाहर कर दिया है.
मगर माना जा रहा है कि बीजेपी के केंद्रीय नेताओं और संघ बनाम वसुंघरा राजे की ये नाक की लड़ाई है. ईगो के इस झगड़े से बीजेपी के कार्यकर्ता दूर हैं. हां जो विधायक वसुंधरा राजे के साथ पौने पांच सालों से हैं वो और उनके समर्थक चुनाव में किनारे किए जाने पर बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
बहुत सारे लगों का कहना है कि बीजेपी को एक चुनाव तो वसुंधरा राजे हरवा सकती हैं मगर उसके बाद वसुंधरा राजे को गुमनामी में खोने का डर हमेशा बना रहेगा क्योंकि बीजेपी और दूसरी पार्टियों में फर्क है. दूसरी पार्टियां अबतक परिवार, जाति, क्षेत्र, संप्रदाय या कांग्रेस की तरह लोकप्रिय नेतओं का समूह है.
बीजेपी में को-ऑपरेटिव स्ट्रक्चर, बदलता है डायरेक्टर
कांग्रेस को लोग लीडर प्राइवेट लिमिटेड पार्टी कहते हैं मगर इसके उलट बीजेपी को-ऑपरेटिव स्ट्रक्चर पर काम करती है जिसमें बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बदलते रहते हैं, लेकिन संस्था और इसके हितकारी बने रहते हैं. यही वजह है कि बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच से वसुंधरा राजे को आगे लाने की मांग कहीं से नहीं उठ रही है.
कोई यह भी कहता हुआ नजर नहीं आता है कि मैं बीजेपी को तभी वोट दूंगा जब वसुंधरा राजे चेहरा होंगी. वसुंधरा राजे की नाराजगी की वजह से बीजेपी को 20 सीटों का नुकसान होता है तो कांग्रेस को 20 सीटों का फायदा होगा. ऐसा चुनाव जिसमें कोई लहर नहीं हो 20 सीटों की संख्या बड़ा खेल कर सकती है.
मगर वसुंधरा राजे अगर सक्रिय नहीं होगी तो क्या करेंगी. क्या वो 25 सितंबर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली का इंतजार कर रही है या फिर टिकटों की सूची देखकर फैला लेंगी. बीजेपी ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए दूसरी सूची भी जारी कर दी पर राजस्थान में ये काम अटका हुआ है. यह डर भी बीजेपी को सता रहा है कि बीजेपी उम्मीदवारों की सूची में वसुंधरा समर्थकों की अनदेखी हुआ तो बगावत हो सकती है.
वसुंधरा गुट ये खबर फैलाने में व्यस्त है कि परिवर्तन यात्राओं में मैडम के बिना भीड़ नहीं आ रही है और दूसरे सभी परिवर्तन यात्राओं की भारी भीड़ के वीडियो और फोटो शेयर करने में लगे रहते हैं. कांग्रेस को खुद से ज्यादा वसुंधरा राजे की नाराजगी पर भरोसा है. कांग्रेसी कहते हैं कि मैडम की नाराजगी हमें जिता देगी. विधानसभा चुनाव में एक दर्जन से लेकर दो दर्जन सीटों पर एक दो हजार के मार्जिन से फैसला होता है ऐसे में गुस्साए वसुंधरा राजे के समर्थक हमें जिताएंगे और बीजेपी को हराएंगे.
चुनाव में एक फीसदी वोट कर सकता है खेल खराब
राजस्थान विधानसभा चुनाव में एक फीसदी वोटों का स्विंग खेल खराब कर सकता है. वसुंधरा राजे एकमात्र बीजेपी की नेता हैं जिनकी अपील सभी जातियों और राजस्थान के सभी क्षेत्रों में हैं. वसुंधरा के बनाए नेता और उनके कार्यकाल में कमाए नेता हर विधानसभा में मिल जाएंगे.
वसुंधरा राजे कहती भी हैं कि वह धौलपुर राजघराने की बहू हैं और उनके फ्रंट शीट पर आने से बंटे हुए जाट पूरी तरह से बीजेपी के खेमे में आ सकते हैं, मगर कहा जा रहा है कि जाटों के वोट के लिए बीजेपी मिर्धा परिवार की बेटी ज्योति मिर्धा को लेकर आई है, जिसका वसुंधरा राजे ने ट्विटर पर भी वेलकम नहीं किया है.
प्रधानमंत्री और वसुंधरा राजे के बीच कभी भी मधुर रिश्ते नहीं रहे हैं. यह बात किसी से छिपी नहीं है. दूसरी बार जब वसुंधरा राजे राजस्थान में बीजेपी के चुनाव प्रचार की अगुआई कर रही थीं तब भी गुजरात के मुख्यमंत्री को दूर रखने की कोशिशों को लेकर सियासी गलियारे में हो हल्ला मचा था और तब से संबंध ऐसा बिगड़ा कि जब मोदी केंद्र में प्रधानमंत्री बने तब भी राजस्थान दौरे पर आते, मगर दोनों की सुखद तस्वीर नहीं दिखती थी.
वसुंधरा और पीएम मोदी के बीच हुई थी मुलाकात
चुनाव हारने के बाद से पिछले पांच सालों में वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बार संसद भवन में मुलाकात की खबर आई थी मगर कोई तस्वीर नहीं आई. इस पर भी बहस चलती रही कि खड़े-खड़े और चलते-चलते मुलाकात हुई या बैठकर भी कोई बात हुई. वसुंधरा राजे के साथ बड़ी समस्या है कि उनके खास चेले नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठोड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का कद खुद बड़ा हो गया. अपने शिष्यों के बढते कद को देखकर वसुंधरा कभी अपना मन बड़ा नहीं कर पाईं और खुद को बेवजह इनसे दूर कर लिया. जो मौदूदा नेता इनके पास हैं कालीचरण सर्राफ, यूनूस खान, प्रताप सिंह सिंघवी या राजपाल सिंह शेखावत वो वसुंधरा राजे के कार्यकाल में मलाईदार पदों पर रहे हैं मगर इनमें राजनैतिक कौशल का अभाव है.
बड़ा सवाल है कि बीजेपी ने वसुंधरा राजे को घर क्यों बैठा रखा है. क्या बीजेपी के पास को इंटर्नल सर्वे है कि बीजेपी वसुंधरा राजे के बिना भी राजस्थान में सरकार बना सकती है. या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बीजेपी को भारी आत्मविश्वास है कि विधानसभा चुनाव में मोदी का जादू चलेगा.