एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) के विवादित आदेश को लेकर राजस्थान में सियासी माहौल गरमा गया है. बीजेपी के बाद अब कांग्रेस विधायक भरत सिंह ने भी अपनी ही सरकार पर निशाना साधा है. भरत सिंह कुंदनपुर ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक पत्र भेजा है और पूरे प्रकरण में भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण दिए जाने का आरोप लगाया है. उन्होंने एसीबी प्रमुख को पद से हटाने की मांग की है.
सांगोद से विधायक भरत सिंह ने पत्र में लिखा- आज के समाचार पत्र में एक अत्यंत चौंकाने वाली खबर छपी है. प्रदेश के एसीबी के मुखिया हेमंत प्रियदर्शी ने यह कहा है कि भ्रष्टाचार में पकड़े गए अधिकारियों के नाम विभाग द्वारा गोपनीय रखे जाएंगे. यह तो सरासर भ्रष्टाचार को संरक्षण प्रदान करना है. इस प्रकार की मानसिकता वाला अधिकारी प्रदेश के एसीबी का मुखिया रहने लायक नहीं है. सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस नीति को ये अधिकारी चुनौती दे रहा है. कृपया, इनकी जगह किसी अच्छे ईमानदार अधिकारी को इस पद पर नियुक्त किया जाए.
एसीबी चीफ ने अपने आदेश में ये कहा है...
दरअसल, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने बुधवार को अपने अधिकारियों से कहा है कि जब तक कोर्ट से दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक घूसखोरी के आरोपियों और संदिग्धों के नाम और फोटो का खुलासा नहीं करें. एसीबी प्रमुख के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभालने के तुरंत बाद हेमंत प्रियदर्शी ने एक आदेश जारी किया है. इसमें उन्होंने कहा कि सिर्फ रैंक या पदनाम और अभियुक्त के विभाग को मीडिया के साथ साझा किया जाना चाहिए.
संदिग्धों के नाम-फोटो सार्वजनिक ना करें
प्रियदर्शी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, दोषी साबित होने तक आरोपी का नाम और फोटो सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आदेश के पीछे कानूनी आधार है. आदेश में प्रियदर्शी ने सभी चौकी प्रभारियों को निर्देश दिया कि जब तक उन्हें अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराया जाता है, तब तक वे आरोपियों और संदिग्धों के नाम और फोटो का खुलासा न करें.
प्रियदर्शी के इस आदेश के बाद बीजेपी ने सरकार पर हमला बोल दिया है. विपक्षी भाजपा ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और बयान की निंदा की. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने आदेश की प्रति ट्वीट की और कहा कि कांग्रेस 'भ्रष्टों के साथ है और भ्रष्ट कांग्रेस के साथ हैं.' उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर ने आदेश को 'तुगलकी फरमान' करार दिया और कहा कि आदेश से प्रेस की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने के लिए यह पारित किया गया है.
बताते चलें कि बुधवार को प्रियदर्शी को डीजी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. 31 दिसंबर को बीएल सोनी के सेवानिवृत्त होने के बाद यह पद खाली हो गया था.