
कांग्रेस आलाकमान की चेतावनी को नजरअंदाज कर सचिन पायलट जयपुर में अनशन पर बैठे थे. पार्टी के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सोमवार देर रात एक पत्र जारी कर सचिन के अनशन कार्यक्रम को पार्टी विरोधी गतिविधि करार दिया था, लेकिन पायलट ने इसकी परवाह नहीं की और अपने ऐलान के मुताबिक मौन अनशन पर बैठे थे. पायलट करीब 5 घंटे अनशन पर बैठे रहे. पायलट ने तो अपना दांव चल दिया है. अब बारी कांग्रेस आलाकमान की है. देखना होगा कि क्या उसका अगला कदम पायलट के खिलाफ होगा. अगर ऐसा हुआ तो पायलट क्या राजनीतिक कदम उठाते हैं ये भी देखने वाली बात होगी.
इस एकदिवसीय अनशन के बाद पायलट ने खुलकर सीएम अशोक गहलोत पर निशाना साधा. पायलट ने कहा, वसुंधरा जी की सरकार में जो भी घोटाले हुए उसके ऊपर कार्रवाई हो इसके लिए मैंने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखे. आमतौर पर मुख्यमंत्री जी को लिखे पत्रों के जवाब आ जाते थे लेकिन इस मुद्दे पर लिखे गए मेरे पत्र का कोई जवाब नहीं आया.
'जनता के बीच क्या मुंह लेकर जाएंगे?'
अनशन के बाद पायलट ने कहा, आने वाले कुछ महीनों में हम दोबारा लोगों के बीच वोट मांगने जाएंगे, चुनाव में अब सिर्फ 6-7 महीने ही बचे हुए हैं. हम जनता के बीच क्या मुंह लेकर जाएंगे? पायलट ने कहा, मैंने एक साल पहले से आग्रह किया हुआ है.
तस्वीर के जरिए सियासी भविष्य का संदेश
जयपुर के जिस 'शहीद स्मारक स्थल' पर जहां सचिन पायलट बैठे थे, वहां महात्मा गांधी की फोटो वाला विशाल बैनर लगाया गया. पोस्टर से अलग नीचे भी दो छोटी तस्वीर रखी गईं, जिनमें एक महात्मा गांधी और दूसरे में ज्योति बा फुले की फोटो दिखाई दी. दोनों महापुरुषों की तस्वीर ऐसे ही नहीं लगाई गई थी बल्कि उसके सियासी मायने भी हैं. गांधी के जरिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संदेश है तो फुले के जरिए सियासी समीकरण को साधने का दांव माना गया. ज्योति बा फुले ने दलित-शोषित-पिछड़ों के अधिकारों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी थी. पायलट ने दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदाय को साधने का दांव चला था.
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नेहरू-गांधी परिवार नदारद
अनशन के मंच पर लगे पोस्टर में न तो गांधी परिवार के किसी नेता की तस्वीर लगी दिखी और न ही पंडित जवाहर लाल नेहरू की. सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक को पोस्टर में जगह दी गई थी. इसको लेकर चर्चा जोरों पर है कि आखिर क्या कुछ होने वाला है. मंच पर लगी तस्वीरों से अलग जो चीज है, वो है कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार पर निशाना, जिन पर उन्होंने बीजेपी की वसुंधरा राजे के खिलाफ आरोपों पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया.
कांग्रेस प्रभारी रंधावा के चेतावनी के बाद सचिन पायलट के अनशन पर बैठने से आगे की रणनीति और कारगर होगी. पार्टी अगर कोई कार्रवाई करती है तो नुकसान किसको होगा यह भी कहना संभव नहीं है, लेकिन पायलट अपने सियासी कदम आगे बढ़ा चुके हैं और खुलकर आरपार की लड़ाई के लिए उतर गए हैं. विधानसभा चुनाव में महज सात महीने का वक्त बाकी है, ऐसे में पायलट ने अनशन के बहाने अपनी ताकत का एहसास अपनी पार्टी से लेकर अपने विरोधी तक को करा दिए हैं. ऐसे में देखना है कि पायलट क्या राजनीतिक संदेश देना चाहते हैं और उनके पास क्या सियासी विकल्प हैं?
1. कांग्रेस में रहकर हक की लड़ाई लड़ेंगे?
सचिन पायलट जिस तरह से भ्रष्टाचार के बहाने सड़क पर उतरे हैं और अनशन किया. उसके बाद सवाल उठने लगा है कि पायलट क्या अपने हक की लड़ाई को कांग्रेस में ही रहते हुए लड़ेंगे या फिर किसी नए राजनीतिक विकल्प की तलाश करेंगे.
पायलट के सामने पहला विकल्प यही है कि कांग्रेस में रहते हुए अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ें, क्योंकि कांग्रेस में रहते हुए वो ज्यादा ताकतवर हैं और पार्टी में होने के वजह से गहलोत विरोधी खेमा भी कहीं न कहीं उनके साथ खड़ा रहता है. सचिन पायलट ने अपनी ताकत का अहसास दिल्ली से लेकर जयपुर तक को करा दिया है और प्रेशर पालिटिक्स का ट्रेलर भी दिखा दिया है कि उनके मांगों को पार्टी नजर अंदाज करती है तो फिर आगे कदम बढ़ाने से हिचकिचाएंगे नहीं.
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इस बार की लड़ाई में सचिन पायलट वसुंधरा राजे सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं और यह मांग गहलोत सरकार से है. मुद्दे को उनके समर्थक राहुल गांधी के अडानी मुद्दे से जोड़कर देख रहे हैं. पायलट के करीबी नेता ने एक न्यूज एजेंसी से कहा कि जब राहुल गांधी कथित भ्रष्टाचार के अडानी मुद्दे पर लड़ रहे थे, उसी तरह पायलट पिछली राजे सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए मुद्दे को उठा रहे हैं. पायलट समर्थक कहते हैं कि उनकी लड़ाई वसुंधरा राजे शासन के तहत भ्रष्टाचार के खिलाफ है और किसी और पर टारगेट नहीं है. इससे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि पायलट कांग्रेस में रहकर ही अपने हक की लड़ाई को लड़ेंगे?
2. क्या कांग्रेस से अलग होंगे पायलट?
पायलट की शुरू से राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है कि उन्हें प्रदेश का सीएम बनाया जाए, लेकिन अशोक गहलोत के पार्टी में रहते हुए संभव नहीं है. कांग्रेस गहलोत में वर्तमान देख रही है जबकि पायलट में भविष्य. ऐसे में कांग्रेस दोनों ही नेताओं को साधकर रख रही है, लेकिन पायलट का धैर्य जवाब दे रहा है. सचिन पायलट आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं, वह पब्लिक सिंपैथी और नैरेटिव सेट करने में जुटे हैं. ऐसे में पायलट ने जिस तरह से अशोक गहलोत के खिलाफ अनशन पर बैठे हैं, उससे साफ है कि अब वे ज्यादा इंतजार के मूड में नहीं है. गहलोत तय कर चुके हैं कि पायलट को किसी भी सूरत में सीएम नहीं बनने देंगे. ऐसे में पायलट को कांग्रेस से अलग होने के लिए देर-सबेर कदम उठाना पड़ सकता है. ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर पायलट कांग्रेस छोड़ते हैं तो फिर उनके पास राजनीतिक ठिकाना क्या होगा?
कांग्रेस छोड़ेंगे तो क्या होंगे विकल्प?
1- अपनी पार्टी बनाएंगे पायलट!
सचिन पायलट अगर कांग्रेस छोड़ते हैं तो क्या अपनी नई राजनीतिक पार्टी बनाएंगे, क्योंकि राजस्थान की सियासत में उनका अपना सियासी ग्राफ है और सामाजिक आधार है. जयपुर, दौसा, टोंक, अजमेर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, झुंझुनूं क्षेत्रों में उनकी अपनी राजनीतिक पकड़ मानी जाती है. यही गुर्जर बेल्ट है और पायलट भी इसी समुदाय से आते हैं. प्रदेश में कोई भी गुर्जर अभी तक मुख्यमंत्री नहीं बना सका है. सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट भी दिग्गज नेता थे और गुर्जर समुदाय के बीच उनकी अपनी पकड़ है. ऐसे में पायलट नए राजनीतिक दल बनाने के विकल्प पर अपने कदम आगे बढ़ा सकते हैं?
2. आम आदमी पार्टी में जाएंगे!
सचिन पायलट अगर कांग्रेस छोड़ते हैं और अपनी नई राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला नहीं करते हैं तो उनके सामने कई सियासी दलों में जाने का विकल्प है. अनशन पर बैठने का फैसला पायलट की सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. पायलट भी मंझे हुए युवा राजनेता हैं. खबर है कि आम आदमी पार्टी के पायलट को राजस्थान में आप पार्टी जॉइन करने पर 2023 में सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट करने का ऑफर दिया है. पायलट खुद को सीएम के रूप में देखना भी चाहते हैं तो आम आदमी पार्टी उनके लिए एक विकल्प हो सकती है.
3. बीजेपी का दामन थामेंगे!
राजस्थान की पूरी सियासत कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिमटी हुई है. पायलट कांग्रेस छोड़ते हैं तो फिर बीजेपी उनके लिए एक मजबूत विकल्प हो सकती है. पायलट के पुराने सहयोगी और दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. पायलट के लिए भी एक मजबूत सियासी ठिकाना बीजेपी बन सकती है, लेकिन उनकी राजनीतिक महात्वकांक्षा बीजेपी में पूरी होगी यह कहना मुश्किल है, क्योंकि पार्टी में सीएम के कई मजबूत दावेदार हैं. ऐसे में बीजेपी के साथ जाने की दिशा में कितना कदम उठाएंगे, इसकी संभावना बहुत कम है.
4. बसपा में जाएंगे!
राजस्थान की सियासत में बसपा की अपनी उपस्थिति रही है. बसपा राज्य में पांच से सात सीटें हमेंशा से जीतती रही है और उसका दलितों के बीच सियासी आधार है, लेकिन पार्टी के पास कोई चेहरा नहीं है. सचिन पायलट कांग्रेस से अलग होने का फैसला करते हैं और बसपा उनके लिए एक विकल्प हो सकती है. इसकी वजह यह है कि पायलट ने जिस तरह से मंच पर ज्योति बा फुले की तस्वीर लगाई है, उसके सियासी संकेत बसपा से मिलते हैं. हालांकि, पायलट की सियासत जिस तरह की रही है, उसके चलते बसपा के साथ जाना उनका आसान नहीं है.
5. हनुमान बेनीवाल के साथ थर्ड फ्रंट बनाएंगे!
राजस्थान की राजनीति में तीसरी ताकत के रूप में हनुमान बेनीवाल की पार्टी बनकर उभरी है. हनुमान बेनीवाल खुले तौर पर कह चुके हैं कि सचिन पायलट अपनी पार्टी बनाएं और हम उनके साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हैं. ऐसे में सचिन पायलट राजस्थान में बेनीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर थर्ड फ्रंट बना सकते हैं और उसका चेहरा पायलट बन सकते हैं. इस विकल्प को लेकर सियासी चर्चा सबसे ज्यादा तेज है. देखना है कि पायलट अपने भविष्य की सियासत को किस दिशा में ले जाते हैं?
ममता-जगन की राह पर चलेंगे पायलट?
सचिन पायलट जिस तरह से आरपार के मूड में उतरे हैं, उससे लगता है कि ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी के सियासी नक्शेकदम पर चलने के लिए कदम बढ़ा चुके हैं. बंगाल में जिस तरह से 90 के दशक में कांग्रेस हाईकमान ने ममता बनर्जी के विरोधी सोमेन मित्रा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी थी. इस बात को लेकर ममता की नाराजगी इतनी बढ़ी कि वह कांग्रेस छोड़कर अपनी टीएमसी का गठन किया.
आंध्र प्रदेश में चंद्रशेखर राव के अचानक निधन के बाद उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी खुद को सीएम के दावेदार के रूप में देख रहे थे, लेकिन पार्टी हाईकमान ने जगह रेड्डी के बजाय किरण रेड्डी को सीएम बना दिया था. इसके चलते जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़कर वाईएसआर कांग्रेस के नाम से अपनी पार्टी बना ली और 2019 में आंध्र प्रदेश की सियासत से कांग्रेस का सफाया कर दिया. बंगाल में भी कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया है.
वहीं, असम में हेमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस इसीलिए छोड़ दी थी कि क्योंकि पार्टी हाईकमान ने तरुण गोगाई को नहीं बदला था. ऐसे में हेमंत बिस्वा ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और मौजूदा समय में असम के मुख्यमंत्री हैं. कांग्रेस का असम से सफाया हो गया है. इसी तरह मध्य प्रदेश की सियासत में कांग्रेस हाईकमान ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को सियासी महत्व दिया तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थकों के साथ बीजेपी का दामन थाम लिया. 15 साल के सियासी वनवास के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस को 15 महीने में ही सरकार गंवानी पड़ी और बीजेपी की सत्ता में फिर से काबिज हो गई. केंद्र में सिंधिया मंत्री हैं और उनका शिवराज सरकार में दबदबा है. इसी तरह से यूपी में तमाम दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए हैं.