राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस चुनाव की तैयारी शुरू करने के बजाए पार्टी नेताओं की आपसी कलह सुलझाने में उलझी हुई है. सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का मनमुटाव अब किसी से नहीं छुपा है. अगर इस दरार को वक्त रहते खत्म नहीं किया गया तो आगामी चुनाव में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
शायद यही वजह है कि 29 मई को दिल्ली में गहलोत और पायलट की एक तस्वीर समाने आई. दोनों नेताओं के बीच का विवाद सुलझाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बंगले पर एक बैठक की गई. इसमें राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल और सुखजिंदर सिंह रंधावा भी मौजूद थे. 4 घंटे चली बैठक में दोनों नेताओं के नेतृत्व में ही राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला लिया गया. बैठक के बाद वेणुगोपाल ने यह दावा किया कि पार्टी में सब कुछ ठीक है. इस दौरान दोनों नेता मुस्कुरा रहे थे, लेकिन बैठक के तीन दिन बाद ही सचिन पायलट ने फिर से तल्ख तेवर दिखा दिए. उन्होंने बुधवार को टोंक पहुंचकर गहलोत सरकार के सामने तीन मांग रख दीं
सचिन पायलट ने क्या कहा और इसके क्या मायने हैं, इसे जानने से पहले यह जान लेते हें कि कब से और किस वजह से उनकी गहलोत से बात बिगड़ गई.
राजस्थान में 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव शुरू हो गया था. दरअसल 2013 के चुनाव में कांग्रेस 21 सीटें मिली थीं. इसके बाद कांग्रेस ने सचिन पायलट को अगले चुनाव के लिए संगठन को खड़ा करने की जिम्मेदारी थी. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई और पांच साल बाद जब 2018 में चुनाव हुए तो उसका परिणाम सामने आया. कांग्रेस ने 100 सीटें जीत लीं. कांग्रेस को इतनी बड़ी जीत दिलाने के बाद भी उन्हें सीएम पद नहीं दिया गया. इसके अलावा उनके खास विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई. इतना ही नहीं, उनके नेताओं को संगठन में भी जगह नहीं मिली. कई बार आलाकमान के सामने अपनी बात रखने के बाद भी वह खाली हाथ ही रहे, जिसके बाद उन्होंने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और अब तो वह खुले मंच से उनका विरोध करने लगे हैं.
सचिन पायलट ने बुधवार को टोंक में अपनी तीन मांगों को फिर से दोहरा दिया. उन्होंने दिल्ली दौरे से पहले भी गहलोत सरकार के सामने अपनी तीन मांगों को रखा था. तब उन्होंने मांगों को पूरा करने के लिए 15 दिन का अल्टीमेटम दिया था. इस पर गहलोत ने पायलट का नाम लिए बिना कहा था- ...यह दिमाग का दिवालियापन नहीं है तो और क्या है. जानें क्या हैं वे मांगें-
- वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच हो
- पेपर लीक से आर्थिक नुकसान झेलने वाले बच्चों को उचित मुआवजा मिले
- राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन को भंग किया जाए, भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी हो.
पायलट ने टोंक में कहा कि अपने मुद्दों को लेकर वे कोई समझौता नहीं करेंगे. मैं हमेशा से युवाओं के हितों के लिए पक्षधर रहा हूं. सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए कि युवाओं के हितों की रक्षा हो. चाहे पेपर लीक मामला हो, पेपर रद्द होना या युवाओं को रोजगार मिलने का मुद्दा हो, युवाओं को हमसे उम्मीदें होती हैं. अगर हम युवाओं के हितों, उनके मुद्दों, उनकी परेशानियों को नहीं उठा सकते तो, युवाओं की उम्मीदें टूटती हैं. मैं उनके हितों के लिए साथ हूं, उनकी मांगों को उठाता रहूंगा. मैं युवाओं की अनदेखी बर्दाश्त नहीं करूंगा.
राजस्थान में सचिन पायलट को यूथ आइकन माना जाता है. पायलट के अलावा कुछ ही नेता ऐसे हैं, जिनकी युवाओं में अच्छी पैठ है. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि सचिन पायलट पिछले एक साल से अपनी सभाओं-बैठकों में युवाओं की बात कर रहे हैं, इसलिए वह पेपर लीक, रोजगार जैसे युवाओं से जुड़े मुद्दों को उठा रहे हैं. युवा उनके जुड़े भी हुए हैं, इसकी एक झलक पिछले पिछले महीने 11 मई को तब दिखी थी, जब उन्होंने अजमेर से जयपुर के लिए जन संघर्ष पद यात्रा शुरू की थी. उनकी इस यात्रा में युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. 40 डिग्री तापमान होने के बाद भी 125 किलोमीटर की यात्रा के अंत तक यूथ उनके साथ जुड़ा रहा था.
चुनाव आयोग के मुताबिक प्रदेश में अभी 5.11 करोड़ मतदाता हैं. इनमें इस बार करीब 20 लाख से ज्यादा नए वोटर जुड़े हैं. अकेले 18 साल के वोटरों की संख्या 10 लाख है. जनवरी में मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रवीण गुप्ता ने बताया था कि निर्वाचन संबंधी कानून में नए प्रोविजन के कारण इस साल में 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर को 17 साल की उम्र के युवा वोटर लिस्ट में अपना नाम जुड़वाने के लिए आवेदन कर सकते हैं.
इसी के तहत विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम 2023 के दौरान राज्य में 17 साल से ज्यादा उम्र के 4 लाख 16 हजार 685 युवाओं ने भी मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए आवेदन किया है. अप्रैल में 1 लाख, जुलाई में 1.50 लाख और अक्टूबर में 1.66 लाख नए वोटर और जुड़ेंगे. देखा जाए तो यह युवाओं के एक बड़ी संख्या है, जो इस बार विधानसभा चुनाव में वोट करेगी. ऐसे में सचिन पायलट युवा वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने के लिए कोई मौका नहीं गंवाना चाहते.
पेपर लीक और परीक्षाएं रद्द होने से तंग आकर पिछले दिनों राजस्थान की सड़कों पर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र सड़कों पर उतर आए थे. यह मामला बेहद गंभीर है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजस्थान में 2011 से 2022 के बीच पेपर लीक के करीब 26 केस दर्ज किए गए, जिनमें 14 केस तो केवल पिछले चार साल में दर्ज किए गए थे. 2019 के बाद से हर साल औसतन तीन पेपर लीक हुए हैं. पेपर लीक के कारण करीब 40 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं.