scorecardresearch
 

अजमेर दरगाह के बाद अब 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' पर भी मंदिर का दावा, जानिए पूरा मामला

एएसआई की वेबसाइट के अनुसार, ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ एक मस्जिद है जिसे दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने 1199 ई. में बनवाया था. मंदिरों के खंडित अवशेषों से निर्मित इस मस्जिद को अढ़ाई दिन का झोंपड़ा के नाम से जाना जाता है.' इसका यह नाम शायद इसलिए पड़ा क्योंकि वहां ढाई दिन का मेला आयोजित किया जाता था.

Advertisement
X
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर, राजस्थान
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर, राजस्थान

अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग को लेकर स्थानीय एक अदालत में हाल में दायर एक याचिका से अजमेर में स्थित 12वीं सदी की मस्जिद अढ़ाई दिन का झोंपड़ा को उसके इस्लाम-पूर्व मूल विरासत के रूप में बहाल करने की मांग शुरू हो गई है.

Advertisement

दरगाह से कुछ ही मिनट की दूरी पर स्थित, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित यह स्थल अपनी ऐतिहासिक पहचान के बारे में चर्चाओं के केंद्र में है. अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने इस दावे को दोहराया कि आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले यह भवन मूल रूप से संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर था.

उप महापौर का दावा

जैन ने पीटीआई से कहा, "इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि झोंपड़े के स्थान पर संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर था. एएसआई ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है. अवैध गतिविधियां चल रही हैं और पार्किंग पर अतिक्रमण किया गया है. हम चाहते हैं कि ये गतिविधियां बंद हों." 

उन्होंने कहा कि एएसआई को झोंपड़े के अंदर रखी मूर्तियों को बाहर निकालना चाहिए और एक संग्रहालय स्थापित करना चाहिए. इसके लिए किसी सर्वेक्षण की आवश्यकता नहीं है. जैन ने दावा किया कि यह तथ्य है कि नालंदा और तक्षशिला की तरह इसे भी भारतीय संस्कृति, शिक्षा और सभ्यता पर बड़े हमले के तहत निशाना बनाया गया था. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एएसआई के पास इस स्थल की 250 से अधिक मूर्तियां हैं और उन्होंने इसके इस्लाम-पूर्व इतिहास के प्रमाण के रूप में स्वस्तिक, घंटियां और संस्कृत शिलालेखों की मौजूदगी की ओर इशारा किया. 

Advertisement

यह भी पढ़ें: 'अजमेर दरगाह को मंदिर बताना भारत के दिल पर हमला', मौलाना मदनी ने सरकार से की ये मांग

मंदिर के अस्तित्व के सबूत!

जैन ने कहा, ‘कोरोना महामारी से पहले, हमने मांग की थी कि संरक्षित स्थल पर गतिविधियों को रोका जाए और स्थल की मूल विरासत को बहाल किया जाए. लेकिन, महामारी के कारण इसे टाल दिया गया.’ एएसआई की वेबसाइट के अनुसार, ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ एक मस्जिद है जिसे दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने 1199 ई. में बनवाया था. यह दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में बनी उस मस्जिद के समकालीन है जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के नाम से जाना जाता है.

हालांकि, विभाग द्वारा सुरक्षित रखने को लेकर परिसर स्थित बरामदे में बड़ी संख्या में मंदिरों की मूर्तियां रखी गई हैं, जो लगभग 11वीं-12वीं शताब्दी के दौरान इसके आसपास एक हिंदू मंदिर के अस्तित्व होने को दर्शाती हैं. मंदिरों के खंडित अवशेषों से निर्मित इस मस्जिद को अढ़ाई दिन का झोंपड़ा के नाम से जाना जाता है. इसका यह नाम शायद इसलिए पड़ा क्योंकि वहां ढाई दिन का मेला आयोजित किया जाता था.

जैन साधु का दावा

विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने पीटीआई को बताया कि अढ़ाई दिन का झोंपड़ा हमेशा से ही संस्कृत विद्यालय के रूप में लोगों के मन में अंकित रहा है. उन्होंने कहा, "अजमेर के लोग जानते हैं कि प्राचीन काल में सनातन संस्कृति में शिक्षा के रूप में इसका क्या महत्व था. यह कैसे एक विद्यालय से अढ़ाई दिन का झोंपड़ा बन गया, यह शोध का विषय है." एक जैन साधु ने दावा किया कि यह स्मारक पहले संस्कृत विद्यालय था और विद्यालय से पहले यहां एक जैन मंदिर था.

Advertisement

यह भी पढ़ें: अजमेर दरगाह के सर्वे से जुड़े मामले पर पूर्व नौकरशाहों ने पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी, दखल देने की उठाई मांग

 इसी साल मई में जैन मुनियों का समूह विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के साथ अढ़ाई दिन का झोंपड़ा देखने गया था. बाद में, अजमेर दरगाह के ‘अंजुमन’ के सचिव सरवर चिश्ती का एक ऑडियो संदेश सोशल मीडिया पर सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने जैन मुनियों के बिना कपड़ों के स्मारक में जाने पर आपत्ति जताते हुए पुलिस के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराया है.

27 नवंबर को, अजमेर की एक सिविल अदालत ने हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर एक याचिका के बाद अजमेर दरगाह समिति, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और एएसआई को नोटिस जारी किए, जिसमें दावा किया गया था कि दरगाह मूल रूप से एक शिव मंदिर था.

Live TV

Advertisement
Advertisement