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पायलट के तेवरों की क्रोनोलॉजी से समझिए गहलोत के लिए कितनी बड़ी है ताजा चुनौती

सचिन पायलट ने रविवार को ऐलान किया कि वो 11 अप्रैल यानी मंगलवार को एक दिन का अनशन करेंगे. राजस्थान में बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भष्टाचार की जांच की मांग को लेकर पायलट कांग्रेस सरकार के खिलाफ मैदान में उतरने जा रहे हैं. इसके साथ ही पायलट ने उस चिट्ठी को भी सार्वजनिक कर दिया है जो चिट्ठी उन्होंने 28 मार्च 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखी थी.

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अशोक गहलोत के लिए बड़ी चुनौती बन गया है पायलट का अनशन
अशोक गहलोत के लिए बड़ी चुनौती बन गया है पायलट का अनशन

राजस्थान की सियासत के जादूगर कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने 40 साल के सियासी सफर में बड़े-बड़े नेताओं को मात दी है और अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखा है. अब उनके सामने अपने सियासी करियर की सबसे बड़ी चुनौती है जिसका नाम है सचिन पायलट. गहलोत 2018 में मुख्यमंत्री जरूर बन गए, लेकिन पिछले सवा चार साल से पायलट ने उन्हें चैन की नींद नहीं सोने दिया. अब एक बार फिर से पायलट ने बगावती तेवर अख्तियार कर रखा है और अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है.
 
सचिन पायलट ने रविवार को ऐलान किया कि वो 11 अप्रैल यानी मंगलवार को एक दिन का अनशन करेंगे. राजस्थान में बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भष्टाचार की जांच की मांग को लेकर पायलट कांग्रेस सरकार के खिलाफ मैदान में उतरने जा रहे हैं. इसके साथ ही पायलट ने उस चिट्ठी को भी सार्वजनिक कर दिया है जो चिट्ठी उन्होंने 28 मार्च 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखी थी. इतना ही नहीं नवंबर 2022 में फिर से लिखी गई चिट्ठी का जिक्र भी उन्होंने किया. पायलट ने कहा कि मौजूदा सरकार आबकारी माफिया, अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण और ललित मोदी हलफनामे वाले मामले में कार्रवाई करने में विफल रही है. 

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नवंबर 2018 से जारी है अदावत

राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी वर्चस्व की यह जंग आजकल की नहीं बल्कि 2018 के चुनाव के बाद से ही चली आ रही है. नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन उसे 99 सीटें ही मिल सकीं. ऐसे में मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों नेता अड़ गए. पायलट कांग्रेस अध्यक्ष होने और बीजेपी के खिलाफ पांच सालों तक संघर्ष करने के बदले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी जता रहे थे तो अशोक गहलोत ज्यादा विधायकों का अपने पक्ष में समर्थन होने और वरिष्ठता के आधार पर अपना हक बता रहे थे. 

कांग्रेस विधानसभा में बहुमत से दो सीटें दूर थी. ऐसे में अशोक गहलोत ने बसपा के 6 और 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में जुटा लिया, जिसके चलते सीएम पोस्ट पर उनकी दावेदारी और पुख्ता हो गई, क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव में किसी को चेहरा घोषित नहीं किया था. गांधी परिवार और दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से नजदीकी रिश्ते होने के चलते गहलोत को कांग्रेस नेतृत्व से भी हरी झंडी मिल गई. विरोध में उसी समय पायलट ने बगावत का झंडा उठा लिया. 

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कांग्रेस हाईकमान ने दोनों नेताओं को दिल्ली तलबकर उनके बीच सुलह का रास्ता निकाला. राहुल गांधी के साथ दोनों नेताओं की तस्वीर भी सामने आई. गहलोत सीएम बने तो पायलट को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली. हालांकि, सुलह का क्या फॉर्मूला तय हुआ था, ये बातें सार्वजनिक नहीं की गईं. पायलट समर्थकों का दावा है कि सीएम के लिए ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तय हुआ था. सरकार बनने के साथ ही गहलोत-पायलट के बीच मनमुटाव की खबरें आने लगीं. दोनों नेता अपना-अपना सियासी वर्चस्व स्थापित करने में जुट गए. उनके बीच जुबानी जंग तेज हो गई. अदावत की पहली झलक 20 महीने में ही दिखने लगी. 

जून 2020 में बगावत से पहले सूचना लीक

सचिन पायलट के मन में लगातार यह पीड़ा थी कि वे राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के हकदार थे और अशोक गहलोत बाजी मार ले गए. पायलट ने विधायकों का समर्थन जुटाना शुरू किया. उन्हें लगा कि उनके साथ 35 से 40 कांग्रेस विधायक हैं. प्लानिंग के मुताबिक सचिन पायलट के पिता स्वर्गीय राजेश पायलट की पुण्यतिथि के दिन 11 जून 2020 को बगावत होनी थी, लेकिन सूचना लीक होने और कुछ विधायकों द्वारा अनुपस्थित रहने से बगावत नहीं हो सकी. इसके बाद मामला टल गया. 

जुलाई 2020 को पायलट की बगावत

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जुलाई 2020 में डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ सचिन पायलट ने बगावत का झंडा उठा लिया और अशोक गहलोत का तख्ता पलटने की कोशिश की. पायलट अपने समर्थक कांग्रेस विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर के एक होटल में ठहरे हुए थे. प्रदेश सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया था और सरकार बचाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने 80 समर्थक विधायकों की बाड़ेबंदी करनी पड़ी. 34 दिन तक विधायकों के साथ सीएम गहलोत भी पहले जयपुर और फिर जैसलमेर के होटलों में रहे. 

पायलट को मनाने की कोशिशें होती रहीं लेकिन कोई कामयाब नहीं हो पा रहा था. सचिन पायलट ने चुप्पी साथ रखी थी. उनके समर्थक विधायकों के ट्वीट आने लगे कि उन्हें अशोक गहलोत का नेतृत्व मंजूर नहीं है. इससे यह स्पष्ट हो गया था कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री की कुर्सी की खातिर अपने समर्थित विधायकों के साथ होटल में जाकर बैठ गए हैं. 14 जुलाई 2020 को सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद से बर्खास्त कर दिया गया. इसके साथ ही रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह को भी मंत्रीपद से बर्खास्त कर दिया गया. गहलोत ने पायलट के लिए गद्दार से लेकर निकम्मा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. 

अगस्त 2020 में प्रियंका के दखल से सुलह

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अगस्त 2020 के दूसरे सप्ताह में सचिन पायलट की प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई. कई मुद्दों पर बातचीत के बाद कुछ शर्तों पर सचिन पायलट मानने को राजी हुए. 14 अगस्त 2020 को गहलोत बहुमत साबित करने में कामयाब रहे. इसी तरह राज्य सरकार पर आया सियासी संकट टल गया. कांग्रेस हाईकमान ने तीन वरिष्ठ नेताओं की एक कमेटी राजस्थान मामले के लिए बना दी,. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने में लंबा समय लगा दिया. इस दौरान गहलोत के सियासी दबदबे के आगे किसी नेता की एक न चली. 

नवंबर 2021 में पायलट समर्थकों की वापसी

बगावत के करीब डेढ़ साल बाद गहलोत ने पायलट समर्थकों को अपनी कैबिनेट में वापस लिया. नवंबर 2021 में मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो पायलट गुट के पांच नेताओं को जगह मिली. हालांकि, इन ड़ेढ़ साल में सचिन पायलट ने कई बार तेवर दिखाए और मीडिया में बयानबाजी भी की. उन्होंने राज्य की कानून व्यवस्था का मुद्दा भी उठाया, लेकिन गहलोत ने अपने मन के मुताबिक समय पर मंत्रिमंडल विस्तार किया. 

पायलट और गहलोत समर्थकों में टकराव

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की राजस्थान में एंट्री से पहले फिर से गहलोत और पायलट समर्थक अपनी-अपनी ताकत दिखाने में जुट गए. संतुलन बनाने के लिए संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जयपुर पहुंचे. उन्होंने किसी तरह से दोनों गुटों के हाथ उठवाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी में सब ठीक है लेकिन यह सिर्फ ऊपरी दिखावा था. 

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सितंबर 2022 को गहलोत खेमे की बगावत

राजस्थान में मुख्यमंत्री के बदलाव और नए सीएम के चयन के लिए कांग्रेस आलाकमान का संदेश लेकर पर्यवेक्षक के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन जयपुर पहुंचे थे. गहलोत के आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी, जहां गहलोत गुट के विधायक ही नहीं पहुंचे. गहलोत ने महसूस कर लिया था कि विधायक दल की बैठक के बहाने उनकी कुर्सी पर पायलट को बैठाने की पठकथा लिखी जा रही है. उन्होंने विधायकों के जरिए अपना दांव चला. गहलोत समर्थक विधायकों ने अलग बैठक कर साफ कर दिया कि पायलट को वे सीएम के तौर पर कुबूल नहीं करेंगे. यहां तक कि उन्होंने एक साथ देर रात स्पीकर के घर पर पहुंच कर सामूहिक इस्तीफे का ऐलान भी कर दिया. 

गहलोत समर्थकों पर एक्शन की डिमांड

मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में खुलेआम बगावत का झंडा उठाने, विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने और सामांतर बैठक करने की अनुशासनहीनता के लिए नोटिस दिया गया, लेकिन उन पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई. इसे लेकर सचिन पायलट ने कई बार सवाल खड़े किए और एक्शन न होते देख खुलकर बयानबाजी भी की. गहलोत ने भी जवाबी बयानबाजी की. 

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पायलट और गहलोत के बीच जुबानी जंग

16 जनवरी को नागौर जिले के परबतसर में पायलट की ओर से किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में पायलट ने पेपर लीक माफिया को संरक्षण देने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन नहीं होने को लेकर बयान दिया. यह मुद्दा छेड़कर पायलट ने अशोक गहलोत सरकार पर सवाल उठा दिए. अगले ही दिन अशोक गहलोत ने जयपुर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि पेपर लीक प्रकरण में जिन्हें पकड़ा गया है, वे ही सरगना हैं. वहीं, 17 जनवरी 2023 को हनुमानगढ़ के पीलीबंगा में पायलट ने कहा कि अगर नेता और अफसर पेपर लीक प्रकरण में शामिल नहीं हैं तो तिजोरी में बंद पेपर बाहर कैसे आता है. यह तो ‘जादूगरी’ हो गई. 

18 जनवरी को झुंझुनूं जिले के गुढा में पायलट ने एक बार फिर गहलोत पर हमला करते हुए कहा कि राजनैतिक नियुक्तियों में भेदभाव हो रहा है, जो कार्यकर्ता पार्टी में सालों तक मेहनत करते हैं, उन्हें राजनैतिक नियुक्ति नहीं दी जाती. इससे कांग्रेसी कार्यकर्ता हताश और निराश हैं. इसी दिन 18 जनवरी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पायलट की तुलना कोरोना से कर दी और कहा कि हमारी पार्टी के अंदर भी एक बड़ा कोरोना आया हुआ है. इसके बाद 19 जनवरी को पायलट ने वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच का मुद्दा उठाया और कहा कि चार साल बीत गए लेकिन अभी तक बीजेपी राज में हुए घोटालों की जांच नहीं हुई. 

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गहलोत को पायलट की लिखी चिट्ठी सार्वजनिक

सचिन पायलट ने 28 मार्च 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पांच पन्ने की चिट्ठी लिखी थी. मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी में उन्होंने पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के शासनकाल में हुए घोटालों सहित कई तरह के मुद्दे उठाए थे. 2 नवंबर 2022 को पायलट ने मुख्यमंत्री को फिर से एक चिट्ठी भेजकर पूर्व में भेजी गई चिट्ठी पर कार्रवाई करने का आग्रह किया था. दो बार चिट्ठी भेजने के बावजूद गहलोत ने ना तो इन मुद्दों पर कोई ध्यान दिया और ना ही चिट्ठी का जवाब दिया. इसे लेकर पायलट अब खुलकर गहलोत सरकार के खिलाफ उतर गए हैं और अनशन पर बैठने का ऐलान कर दिया है. 

क्यों हो रही है ये सियासी खींचतान?

सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ने कांग्रेस हाईकमान के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. दोनों नेताओं के बीच सारी लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर है. पायलट चाहते हैं कि उन्हें सीएम की कुर्सी दी जाए जबकि गहलोत इसके लिए राजी नहीं हैं. पार्टी नेतृत्व भी दोनों ही नेताओं को गंवाना नहीं चाहता. राजस्थान में गहलोत कांग्रेस का वर्तमान हैं तो पायलट भविष्य. ऐसे में पार्टी किसी एक को चुनने की स्थिति में नहीं है और एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है. पिछले चार साल से वो संकट को टाल रही है, लेकिन पायलट अब पूरी तरह से आरपार के मूड में हैं. विधानसभा चुनाव में महज छह महीने बचे हैं और उन्हें लगता है कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं. देखना है कि इस बार उनके तेवर पार्टी के अंदर क्या और कितना असर करते हैं.

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