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कांग्रेस के लिए क्यों आसान नहीं पायलट पर एक्शन, सचिन के लिए क्यों मुश्किल है अलग राह? 7 Points में समझें

इस साल के आखिर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले सत्ताधारी कांग्रेस की मुसीबत बढ़ गई है. राजस्थान में सचिन पायलट ने मंगलवार को अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करने का ऐलान किया है. उधर, कांग्रेस ने पायलट को कड़ी चेतावनी दी है. पार्टी ने दो टूक कहा है कि इस तरह का कोई भी काम पार्टी विरोधी गतिविधि माना जाएगा.

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सचिन पायलट (File Photo)
सचिन पायलट (File Photo)

राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में सियासी कलह तेज हो गई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की अदावत एक बार फिर खुलकर सामने आ गई है. पायलट जयपुर के शहीद स्मारक पर अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठ गए हैं. उनके साथ समर्थकों का हुजूम है. 

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कांग्रेस पायलट के इस कदम को पार्टी विरोधी गतिविधि बता रही है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या पायलट पार्टी के खिलाफ जाएंगे या फिर अपने कदम पीछे खींचेंगे. हालांकि, पायलट अनशन पर बैठते हैं तो कांग्रेस के लिए उनके खिलाफ एक्शन लेना इतना भी आसान नहीं होगा, क्योंकि मामला जितना सीधा दिख रहा है, उतना है नहीं!

पायलट ने ऐलान कर रखा है कि अगर वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के मामलों में कदम नहीं उठाए गए तो वह राज्य सरकार के खिलाफ एक दिन का अनशन करेंगे. इसके लिए उन्होंने अपने खेमे के नेताओं को भीड़ जुटाने का जिम्मा दे रखा है. माना जा रहा है कि जयपुर, दौसा, टोंक,अजमेर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, झुंझुनूं क्षेत्रों के कार्यकर्ता और लोग उनके अनशन में शामिल हो सकते हैं. पायलट ने अनशन को लेकर अपने समर्थक विधायकों से भी मंथन किया है.

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वहीं, राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा का मानना है कि पायलट अनशन करते हैं तो यह पार्टी के खिलाफ माना जाएगा. रंधावा का कहना है, 'कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रही है. पायलट को पहले हमसे बात करनी चाहिए थी, इस पर मैं सीएम गहलोत से बात करता और उसके बाद अगर एक्शन नहीं लिया जाता, तब उनको अनशन करने का हक था. पायलट ने पार्टी में मुद्दे रखने के बजाय सीधे अनशन का रास्ता चुना, जो कि सही नहीं है.' 

सचिन पायलट अनशन पर बैठेंगे 

सुखजिंदर सिंह रंधावा ने यह बात साफ कर दी है कि पायलट अब जो कदम उठा रहे हैं तो वह गहलोत के खिलाफ ही नहीं बल्कि पार्टी के विरोध में भी है. ऐसे में कांग्रेस और पायलट दोनों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है. कांग्रेस के द्वारा रेड लाइन खींचने के बाद भी सभी के मन में सवाल है कि क्या सचिन पायलट कथित भ्रष्टाचार के मामले की जांच की मांग को लेकर एक दिन के अनशन पर बैठेंगे? 

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आखिर अनशन पर बैठना अब मजबूरी क्यों?

पायलट वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच का मुद्दा उठा रहे हैं. पायलट ने वसुंधरा राजे पर करप्शन और कुशासन का आरोप लगाते हुए गहलोत के पुराने वीडियो चलाकर पूछा है कि इन मामलों की जांच क्यों नहीं की गई. कांग्रेस के पास पूर्व की बीजेपी सरकार के खिलाफ सबूत थे, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं की. पायलट ने कहा था हम इन वादों को पूरा किए बिना चुनाव में नहीं जा सकते. पायलट सीएम गहलोत और बीजेपी नेता वसुंधरा के सियासी रिश्ते से वाकिफ हैं. ऐसे में पायलट इस मामले में अपने कदम काफी आगे बढ़ा चुके हैं, जिसे पीछे खींचना उनके लिए आसान नहीं है. 

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पायलट ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार को लेकर जो मांग उठाई है, उसे निश्चित तौर पर केंद्रीय नेतृत्व को भी विचार करने के लिए विवश कर दिया है. ऐसे में पायलट ने कार्यकर्ताओं और नेताओं से स्पष्ट रूप में कहा है कि वे अपनी शालीनता के साथ अनशन करेंगे और सरकार को वसुंधरा के खिलाफ जांच करने के लिए अपनी मांग रखेंगे. ऐसे में हो सकता है कि वह अपने समर्थक विधायकों को न बुलाएं, लेकिन उनके बयानों से साफ है कि वे अब आरपास के मूड में हैं और पीछे नहीं देखेंगे. 

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क्या पायलट के पास है आखिरी मौका?

पायलट की शुरू से राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है कि उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाए. पायलट खेमा चाहता है चुनाव से पहले सीएम बदला जाए. पंजाब की तरह राजस्थान में भी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने की मांग पायलट गुट लगातार कर रहा है. सितंबर 2022 की विधायक दल की मीटिंग कैंसिल होने के बाद कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि जल्द ही फिर एक मीटिंग आयोजित की जाएगी, लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में चली गई. राज्य में तीन दशक से सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है. एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार रहती है. ऐसे में अब पायलट के पास कोई विकल्प नहीं बचा है और उन्हें लगता है कि अगर अब कोई फैसला नहीं हुआ तो फिर उनके हाथों से बाजी निकल जाएगी. इसीलिए पायलट ने पूरी तरह से मोर्चा खोला दिया है. 

कांग्रेस गहलोत में वर्तमान देख रही है जबकि पायलट में भविष्य. इसीलिए कांग्रेस दोनों ही नेताओं को साधकर रख रही थी, लेकिन पायलट का धैर्य जवाब दे रहा है. सचिन पायलट आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं, वह पब्लिक सिंपैथी और नैरेटिव सेट करने में जुटे हैं. 

सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि पायलट खुद इस इंतजार में हैं कि कांग्रेस हाईकमान या तो उनकी बातों को मानते हुए पायलट को फ्री हैंड दे और सीएम चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करे या फिर पार्टी खुद उनके खिलाफ कोई एक्शन ले. जिस तरह सियासी संकट के दौरान राजस्थान में हुआ था और जिस तरह के आरोप सीएम अशोक गहलोत लगाते रहे हैं. ऐसे में जनता को संदेश जाएगा कि पार्टी ने पायलट पर एक्शन लिया तो उन्हें बड़ा कदम उठाना पड़ा.

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क्या पायलट को मना पाएंगे रंधावा? 

कांग्रेस प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा जयपुर पहुंच गए हैं और माना जा रहा है कि पायलट को मनाने की कोशिश कर सकते हैं और जांच कराने का आश्वासन देकर समझा-बुझाकर बीच का रास्ता निकाल सकते हैं. रंधावा अपना उदाहरण देकर मना सकते हैं कि उन्होंने भी पंजाब में सीएम से कैप्टन अमरिंदर को हटवाया था, लेकिन खुद सीएम नहीं बन पाए थे और सत्ता की कमान चरणजीत सिंह चन्नी को मिली थी और उन्हें उपमुख्यमंत्री बनना पड़ा था. पायलट को यह भी राय दे सकते हैं कि अभी वो युवा है समय बाकी है, जल्दबाजी न करें, पार्टी ने बहुत कुछ दिया है और मौजूदा संकट के समय में उन्हें पार्टी में इस तरह की गतिविधियां नहीं करनी चाहिए. 

अनशन करने से पायलट के सियासी भविष्य पर असर पड़ सकता है, क्योंकि अब यह सिर्फ गहलोत के मामले तक ही सीमित नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी का मामला बन गया है. ऐसे में पायलट का कदम पार्टी विरोधी कदम के तौर पर देखा जा सकता है. पायलट अपने सियासी भविष्य को देखते हुए अपने कदम पीछे खींच सकते हैं, लेकिन उनके पास भी बहुत ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं है. बीजेपी में भी कई नेता है, जो सीएम के दावेदार हैं और पार्टी में जबरदस्त तरीके से गुटबाजी है. ऐसे में कांग्रेस में रहते हुए ही अपने हक की लड़ाई लड़ना पायलट की मजबूरी है. इसके लिए वो चाहेंगे कि ऐसा कुछ हो, जिससे कि उनका सम्मान भी बना रहे और बात भी बन जाए.

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क्या पायलट पर कांग्रेस एक्शन ले पाएगी 

पायलट अगर अनशन करने से अपने कदम पीछे नहीं खींचते हैं तो क्या पार्टी उनके खिलाफ कोई एक्शन लेगी, क्योंकि यह बात रंधावा साफ कह चुके हैं कि अनशन का फैसला पार्टी विरोधी गतिविधि माना जाएगा. कांग्रेस भले इसे पार्टी विरोधी बता रही हो, लेकिन पायलट के खिलाफ एक्शन लेना आसान नहीं है. इसके पीछे कई वजह हैं, पहली बात यह है कि पायलट का अपना सियासी ग्राफ है और युवाओं के बीच उनकी छवि काफी बेहतर है. कांग्रेस उनके खिलाफ एक्शन लेकर राजस्थान में भविष्य की सियासी राह मुश्किल नहीं करना चाहेगी. 

एक्शन न किए जाने की दूसरी वजह यह हो सकती है कि 25 सिंतबर 2022 को मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की मौजूदगी में होने वाली बैठक के पैरेलल बैठक करने वाले गहलोत खेमे के नेताओं पर अनुशासनहीनता करने के लिए कोई एक्शन नहीं लिया गया. शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को अनुशासनहीनता के लिए नोटिस दिया गया था, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है. ऐसे में पायलट के कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग को लेकर अनशन पर बैठने के खिलाफ एक्शन लेना आसान नहीं होगा. एक्शन होता है तो पायलट को सहानुभूति हासिल करने का मौका मिल जाएगा. माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें फिलहाल समझा बुझाकर या फिर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करेगी?

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पायलट की डिमांड क्या है?

सचिन पायलट फिलहाल अनशन तो वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच कराने और कार्रवाई करने की मांग उठा रहे हैं. वसुंधरा सरकार में खान महाघोटाला, भ्रष्टाचार, 90 बी घोटाला, बजरी, खनन माफिया समेत कई घोटाले को कांग्रेस ने चुनाव में मुद्दा बनाया था. गहलोत ने ही कहा था कि कांग्रेस सरकार आएगी तो जांच करवाएंगे, आरोपी जेल में होंगे, लेकिन जांच नहीं की जा रही. पायलट ने कहा कि राजस्थान में अवैध खनन, बजरी माफिया, शराब माफिया मामले में भी कार्रवाई की बात कही गई थी. लेकिन पायलट की केवल यह ही मांग नहीं है बल्कि गहलोत और वसुंधरा राजे की मिली भगत को भी उजागर करना चाहते हैं.  

पायलट सीएम गहलोत की बीजेपी नेता वसुंधरा राजे के बीच की राजनीतिक नजदीकियों से वाकिफ हैं. समझा जाता है कि पिछली बार गहलोत सरकार गिराने की पायलट की कोशिश नाकाम करने में वसुंधरा की अघोषित मदद का महत्वपूर्ण हाथ था. इसके अलावा उनकी डिमांड यह भी है कि पैरेलल बैठक करने और स्पीकर को कांग्रेस विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे देने के मामले में भी पार्टी कार्रवाई करे. पायलट खेमे की मांग है कि अनुशासहीनता के आरोपी मंत्री महेश जोशी, शांति धारीवाल और धर्मेंद्र राठौड़ पर एक्शन लिया जाए. इसके अलावा पायलट की सियासी ख्वाहिश सीएम बनने की है, जिसे लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है. चुनाव में चंद महीने ही बाकी है और किसी तरह की कोई तस्वीर साफ नहीं हो पा रही. ऐसे में प्रेशर पालिटिक्स बनाने में जुट गए हैं और आरपार के मूड में है.

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गहलोत के साथ क्यों खड़ी है कांग्रेस ?

पायलट और गहलोत की लड़ाई में इस बार कांग्रेस गहलोत के साथ खड़ी है. सात महीने ही बाजी बदल गई है. सितंबर 2022 में कांग्रेस पायलट को सीएम बनाने की पटकथा लिख रही थी. मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर भी भेजा गया था. उस वक्त जो सियासी ड्रामा हुआ, उसमें गहलोत की इमेज को झटका लगा था. सात महीने के बाद पायलट अब जब अनशन पर बैठे हैं तो मामला बदल गया है. जयराम रमेश से लेकर पवन खेड़ा और सुखजिंदर रंधावा तक पायलट के खिलाफ खड़े नजर आए, क्योंकि पार्टी के विधायक पूरी तरह से अशोक गहलोत के साथ हैं. 

सचिन पायलट के दो मित्र जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए हैं और 2020 में ढेड़ दर्जन विधायकों के साथ गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया तो कांग्रेस में यह मैसेज भी हाईकमान तक चला गया कि पायलट भी बीजेपी में जा सकते हैं. इसलिए भी पार्टी हाईकमान ने पायलट पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रही. क्योंकि पायलट को यह भरोसा देकर कांग्रेस पार्टी ने साथ जोड़े रखा कि उनके उठाए मुद्दों पर एक्शन होगा.

गहलोत में कांग्रेस अभी राजस्थान में अपना वर्तमान देख रही है और पंजाब की तरह नेतृत्व में किसी तरह का बदलाव कर कोई जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती. कांग्रेस पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की जगह चरणजीत चन्नी को बनाकर सियासी हश्र देख चुकी है. ऐसे में चुनावी तपिश के बीच राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने का दांव महंगा पड़ सकता है. इसीलिए कांग्रेस फिलहाल गहलोत के साथ खड़ी रहना चाहती है और उनके राजनीतिक अनुभव का फायदा भी उठाना चाह रही. गहलोत ने अपने साढ़े चार साल के शासन में विकास योजनाएं शुरू की हैं, जो चुनाव में ट्रंपकार्ड साबित हो सकती है. ऐसे में गहलोत के हटाने से उसका सियासी फायदा नहीं मिल पाएगा. इसीलिए कांग्रेस न चाहते हुए भी गहलोत के साथ खड़ी है.

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