Chhath Puja 2022: भारतीय संस्कृति के सारे आचार विचार का उल्लेख पुराणों में मिलता है सभी अठारह पुराणों में भगवान सूर्य की महिमा बताई गई है, लेकिन सूर्य पुराण में विस्तार से सूर्योपासना के बारे में उल्लेख है. भविष्य पुराण में भी सूर्य के विषय में आचार विचार, नियम के लाभ और कहां से सूर्योपासना प्रारंभ हुई का विस्तृत उल्लेख है.
सूर्य षष्ठी व्रत आरंभ के बारे में कहा गया है कि राजा सांब भगवान श्री कृष्ण के पुत्र थे उनको कुष्ठ रोग हो गया था. बहुत उपचार किया गया, लेकिन ठीक नहीं हुए तब एक ऋषि ने सूर्य की उपासना करने को कहा, लेकिन सूर्य उपासना जानने वाले ब्राह्मण दिव्य लोक में रहते थे. उन्होंने उपासना की तो दिव्यलोक से ब्राह्मणों को लेकर गरुण पृथ्वी पर आए. ब्राह्मणों ने 3 दिनों तक यज्ञ और मंत्र का पाठ किया. दिव्य लोक से आए ब्राह्मण बिहार के वैशाली मगध और गया में आकर बसे. यही सूर्य षष्ठी व्रत का पौराणिक पक्ष है.
वाराणसी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य एवं ज्योतिषाचार्य पं. दीपक मालवीय ने बताया कि सूर्य की उपासना का महापर्व छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है. इस पर्व पर महिलाएं व्रत रखकर सायंकाल में नदी तालाब या जल से पूरित स्थान में खड़े होकर अस्ताचल गामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं तथा दीप जलाकर रात्रि जागरण के साथ गीत कथा के द्वारा भगवान सूर्यनारायण की महिमा का बखान करती है.
इस बार यह पर्व 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा, लेकिन इसका विधान 2 दिन पहले 28 अक्टूबर यानी आज नहाए खाए के साथ शुरू हो चुका है. समापन में उदित सूर्य को अर्घ देकर 31 अक्टूबर को व्रत की पूर्णता प्राप्त होगी.
पंडित मालवीय के अनुसार पंचमी में षष्ठी तिथि 30 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर लग रही है. जोकि 31 अक्टूबर को प्रातः 5 बजकर 53 मिनट तक रहेगी. वहीं पर 30 अक्टूबर को सूर्यास्त शाम को 5 बजकर 34 मिनट पर होगा और 31 अक्टूबर को सूर्योदय सुबह 6 बजकर 27 मिनट पर होगा. इस तरह षष्ठी तिथि की हानि है. अरुणोदय काल में द्वितीय अर्घ्य के बाद व्रत का पारण होगा.
पहले दिन आज यानी 28 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि में नहाए खाए कर संयम भोजन से पर्व का आरंभ हो गया है. इसे नहाए खाए कहते हैं. 29 अक्टूबर को पंचमी तिथि में संझवत के दौरान शाम के समय मीठा भात या लौकी की खिचड़ी खाई जाती है. 30 तारीख को षष्ठी पर्व व्रत मुख्य दिन होगा. व्रती सायंकाल गंगा तट पर या किसी जल वाले स्थान पर अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देंगी. वही 31 को प्रातः काल अरुणोदय बेला में उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. तदुपरांत व्रती व्रत का पारण करेंगी.